अति आकांक्षा ले जाती है मनुष्य को पतन के पथ की ओर
मानव जीवन की आत्म शान्ति जिन बातो से भंग होती हैं उसमें एक महत्वपूर्ण बात है अति आकांक्षा। जीवन का निर्वाह करने के लिये साधन आवश्यक हैं उन साधनो को जुटाने के लिये श्रम भी अपेक्षित हैं श्रम के पीछे इच्छा शक्ति भी काम करती है ये सभी कुछ हों इनसे कुछ हानि नही, हानि होती है अति आकांक्षा स,े लालसाओं का पहाड़ खड़ा करके उसे पार करने के लिये अहर्निश दौड़ते ही रहना यह कोई जीवन का अर्थ नही है।
मानव जीवन की आत्म शान्ति जिन बातो से भंग होती हैं उसमें एक महत्वपूर्ण बात है अति आकांक्षा। जीवन का निर्वाह करने के लिये साधन आवश्यक हैं उन साधनो को जुटाने के लिये श्रम भी अपेक्षित हैं श्रम के पीछे इच्छा शक्ति भी काम करती है ये सभी कुछ हों इनसे कुछ हानि नही, हानि होती है अति आकांक्षा स,े लालसाओं का पहाड़ खड़ा करके उसे पार करने के लिये अहर्निश दौड़ते ही रहना यह कोई जीवन का अर्थ नही है।
उक्त विचार श्रमण संघीय महामंत्री श्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने पचायती नोहरा में आयोजित विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए प्रकट किये। आकांक्षा ऐसी हो, जो जीवन के विकास में सहायक हो, तो उसका उपयोग समझ में आता है किन्तु ऐसी आकांक्षा जो जीवन कि समस्त उर्जा को अपनी ओर कर रख दें और जीवन आकांक्षाओ का गुलाम बन कर रह जाए। ऐसी आकांक्षाएं निश्चित ही कष्ट दायक और दुर्गति मूलक होती है।
उन्होनें बताया कि व्यक्ति का चरित्र बहु आयामी प्रतिभा से निर्मित होंता है। व्यक्ति प्रतिभा का पुंज है यह अपने जीवन को विस्तार देता जीता है। परिवार-समाज, राष्ट्र ऐसे उनके अनेक पक्ष है। जीवन में सभी दायित्व विवेक पूर्वक पूर्ण होते जाऐ नव सर्जन की दृष्टि भी बराबर बनी रहे। इस तरह एक सर्जनात्मक चरित्र का विकास जीवन में हो सके इसके लिये अति आकांक्षा के जहर से बचना चाहिये।
मुनि जी ने कहा कि सिकन्दर ने जीवन भर दुनिया के अनेक देशो को लूटा किन्तु साथ में क्या ले गया। बहुमूल्य धातुओ, रत्नो के ढेर पड़े रहे और दोनो खाली हाथ फैलाकर मौत के खड्ड़े में समा गया। सब कुछ यही रह गया। मृत्यु जीवन का सत्य है और यह भी सत्य है कि मरने वाला यहा से किसी भी वस्तु का एक अंश भी लेकर नही जाता। अनेक बार तो ऐंसा होंता है कि जीवन भर कष्ट सहकर जो वैभव अर्जित किया जाता है उसका वारिस उस धन को धूल की तरह दुष्कर्मो में उड़़ाकर कंगाल हो जाया करते है। भावी पीढ़ी के लिये अर्थ संचय की दृष्टि रखना मूर्खता है। भावी पीढ़ी अपना उत्पादन स्वयं करे। आप अपने जीवन को देखो और उसमें जो निरर्थक तृष्णा की आग लगी है उसे समाप्त करों। आत्म शक्ति का यही सच्चा उपाय है।
मुनिजी ने बताया कि अज्ञानता व्यक्ति को पदार्थवादी बना देती है। पदार्थवाद में ही व्यक्ति तृष्णा का शिकार होता है। वह स्वयं एक चेतना शीलवाणी है किन्तु व्यक्ति जब जड़ पदार्थो का गुलाम हों जाता है तो चेतना की उसकी अस्मिता ही समाप्त हो जाती है। कार्यक्रम का संचालन हिम्मत बड़ाला ने किया।
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