जिस जमीन पर अब तक परंपरागत खेती से नियमित होने वाली आमदनी हुआ करती थी उसी जमीन पर आधुनिक तकनीक से ना केवल उत्पादन बढ़ा है बल्कि आमदनी में भी दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। कृषि क्षेत्र में किसानों द्वारा परंपरागत तौर पर मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाने के साथ ही हिन्दुस्तान जिंक की समाधान परियोजना से जुड कर उन्नत तकनीक से जहां पैदावार में बढोतरी हुई है वहीं युवा किसान भी कृषि की और आकर्षित हुए है। जहां परंपरागत खेती में गेहूं, मक्का, बाजरा और सोयाबिन, चना की पैदावार के लिए अच्छी गुणवत्ता के बीज और खाद के साथ उच्च तकनीक के समावेश से उत्पादन में वृद्धि हो रही है वहीं दूसरी ओर आधुनिक तकनीक से हाइवेल्यू सब्जियां और फल उत्पादन से आमदनी में बढ़ोतरी हुई है।
पिछले वर्ष परियोजना क्षेत्र में 4 किसानों को सब्जी उत्पादन की विधि का प्रदर्शन कराया गया जिसमें 0.2 हेक्टेयर ईकाइ क्षेत्र में बेड पर मल्चिग शीट पर बून्द-बून्द सिचाई के माध्यम से सब्जियों की खेती की गई जिसके शानदार प्रदर्शन के फलस्वरूप किसानों ने परम्परागत विधि से होने वाली खेती के सापेक्ष 5-6 गुना अधिक आय अर्जित की जो लाखों मे थी। इस प्रदर्शन को देखते हुए किसानों ने इस वर्ष उत्साह दिखाते हुए 36 किसानों को जोडा गया एवं पिछले वर्ष की भाति इस वर्ष भी बेहतर परिणाम आने के आसार है। चूकि यह विधि कम मेहनत एवं कम लागत की है जिससे अधिक लाभ के कारण किसानों में लोकप्रिय हो रही है ।
कृषि तकनीकी केंद्र एमपीयूएटी उदयपुर के प्रभारी डाॅ इन्द्रजीत माथुर का कहना है कि हिन्दुस्तान जिंक द्वारा बायफ के सहयोग से संचालित की जा रही समाधान परियोजना से प्रदेश के 5 जिलों में किसान लाभान्वित हो रहे है। परियोजना में मृदापरीक्षण, कृषि बीज, बागवानी पौधों की गुणवत्ता, पशुओं की नस्लों में सुधार के साथ साथ तकनीक और प्रोद्योगिकी में सुधार पर विशेष ध्यान दिया जाता हैै जिससे किसानों की आय दुगुनी हुइ है।
भीलवाड़ा, आगूंचा के हनीफ मंसूरी का कहना है कि “मैं इस तरीके से सब्जियों की खेती के बारे में नहीं जानता था। जब मैंने समाधान टीम को किसानों की इस प्रकार की खेती में मदद करते हुए देखा, तो मैं थोड़ा चिंतित था। मैंने समाधान टीम के निर्देशन में सब्जियों की खेती करने का फैसला किया और यह मेरे लिए एक बड़ी सीख है। ऐसी बहुत सी छोटी-छोटी बातें थीं जिनके बारे में हम ध्यान नहीं रखते थे। लेकिन अब मैं सब्जियों की खेती करने में सक्षम हूं और वह भी सुरक्षित है। ”
चित्तौडगढ़ के नगरी गांव के राजेन्द्र कीर का कहना है कि “पिछले साल मैंने देखा कि समधान टीम के साथ एक किसान सब्जी की खेती कर रहा था जिसका खेत आकर्षक लग रहा था। जानकारी लेने पर पता चला कि वह किसान टमाटर और सब्जी की खेती कर रहा है। आश्चर्य भी हुआ की मिर्ची और टमाटर की खेती इतने नियोजित तरीके से की जा रही है तब ही से मैने भी इस तकनीक का उपयोग कर खेती की और उम्मीद है कि पहले से अधिक आमदनी होगी।
गावं सिघटवाडा जावर माईन्स उदयपुर लाल सिंह ने हाइटेक खेती से जुड कर मिर्ची की खेती की साथ ही नारायण लाल नायक गांव रघुनाथपुरा, दरीबा राजसमन्द ने भी इसी प्रकार समाधान परियोजना से जुड कर नवीनतम तकनीक से खेती कर हमेशा से दुगुनी आय प्राप्त की।
इसी प्रकार सालेरा, के शंकर जाट ने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि समाधान की टीम हमें एक्सपोजर विजिट के लिए ले गई और मुझे ड्रिप और मल्चिंग शीट का उपयोग करके वेजिटेबल खेती करने के बारे में सीखने को मिला। उस वर्ष इस खेती के बारे में अधिक जानने के लिए, मैंने एक बीघा जमीन पर खेती करना शुरू किया जिससे मुझे तीन गुना ज्यादा कमाई हुई। इस वर्ष, मैंने बिना किसी सहायता के 2 बीघा जमीन पर हाई-टेक कल्टिवेशन का विस्तार किया है। मैं ड्रिप लाया और उन्हें स्थापित किया जिससे मुझे 80 क्विंटल की बम्पर सब्जी उत्पादन की उम्मीद है।”
कम क्षेत्रफल में अधिक से अधिक पौधे लगा कर सघन बागवानी को प्रोत्साहित किया जा रहा है। आम एवं अमरूद की सघन बागवानी की शुरूआत 0.2 हेक्टेयर ईकाइ क्षेत्र में प्रति ईकाइ क्षेत्र से होने वाले उत्पादन को बढावा देने हेतु 46 किसानों के साथ सघन बागवानी शुरू की है पूर्व में बागवानी के 500 बगीचे स्थापित किये जा चुके है जिनमें निम्बू, आम, बेर, अमरूद, चीकू इत्यिादी फल वृक्षों का समावेश किया गया है।
परियोजना क्षेत्र में क्षमतावर्धन के साथ आजिविकावर्धन को बढावा देने हेतु कृषि क्षेत्र की विभिन्न गतिविधियां जैसे रबी एवं खरीफ की दलहनी, अनाज, तिलहनी एवं सब्जीवर्गीय फसलों के पैकेज ऑफ़ प्रेक्टिस जिसमें गेहू, चना, मक्का, बाजरा, सोयाबीन, उडद व मूंग की उन्नत किस्मों का समावेश उपरोक्त उद्वेश्य को बढावा देने के लिए किया जा रहा है। जिसमें उपज वृद्धि के साथ ही खेती के कुशल एवं उन्नत तरीको का क्षमतावर्धन भी किया जा रहा है जिसे देखकर अन्य किसान परिवार भी रूचि ले रहे है। इसके अतिरिक्त परियोजना द्वारा अन्य क्षेत्रों जैसे वर्षा आधारित क्षेत्रों में मृदाजल संरक्षण, पुष्पउत्पादन, बकरियों में नस्ल सुधार हेतु गांवो में बीजू बकरे उपलब्ध कराना व उन्नत कृषि को बढावा देने हेतु कृषक वैज्ञानिक संवाद, कृषक शैक्षणिक भ्रमण, विभिन्न प्रकार के तकनीकी विधि प्रदर्शन तथा प्रशिक्षणों के साथ ही किसान दिवसों का आयोजन करना इत्यादी शामिल है।
परियोजना क्षेत्र में अन्य उन्नत तकनीको का प्रयोग भी किया जा रहा है जिसमें नस्ल सुधार हेतु कृत्रिम गर्भाधान की डोरस्टेप सुविधा के साथ ही पशुपालको की नवजात बछडियों हेतु मिनरल मिक्चर की सहायता, सालभर हरे चारे की उपलब्धता हेतु बहुवर्षीय चारा बीएनएच-10 का विस्तार, पशु स्वास्थ्य शिविरो का आयोजन, नियमित रूप से स्वास्थ्य परिक्षण, बाझपन निवारण, अजोला इकाई प्रदर्शन व क्षेत्र में उन्नत नस्ल को बढावा एवं प्रोत्साहन देने हेतु प्रतिस्पर्धातमक वत्स प्रदर्शन हेतु रैलियो का आयोजन इत्यादि गतिविधिया संचालित की जा रही है।
समाधान, संस्टेनेबल एग्रीकल्चर मेनेजमेन्ट एवं डव्हलपमेन्ट बाय हयूमन नेचर परियोजना, हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड के सीएसआर विभाग एवं बायफ इंस्टीट्यूट फाॅर संस्टेनेबल लाईवलीहुडस एण्ड डेव्हलपमेन्ट के सयुक्त तत्वाधान में राजस्थान के 5 जिलों उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौडगढ, भीलवाडा एवं अजमेर के 174 गांवों में संचालित की जा रही हैं। जिसमें कृषि एवं पशुपालन की नवीनतम प्रौधोगिकी का उपयोग किसानों की आय बढाने एवं आजीविकावर्धन हेतु किया जा रहा है।
परियोजना के अन्तर्गत क्षेत्र के 30 हजार कृषक परिवारों को लाभान्वित करने का लक्ष्य है। किसानों की आजीविका में बढ़ोतरी एवं सतत विकास हेतु एफपीओ यानि किसान उत्पादक संगठनों का गठन किया जा रहा है जिससे किसानों को तकनीक एवं बीज के साथ ही उत्पादन की कीमतों में भी फायदा मिलेगा।
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