झीलों की मिट्टी से बनाये गणपति ही पूजा के योग्य व पुनः विसर्जन इन्हीं का मान्य, बाकी शास्त्रोचित नहीं
“झीलों की मिट्टी से बनाये गणपति ही पूजा के योग्य होते है” - उक्त विचार गणेश चतुर्थी के अवसर पर आलोक संस्थान के आलोक सी.सै. स्कूल, हिरण मगरी में छात्रों को सम्बोधित करते हुये आलोक संस्थान के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमावत ने कहे।
“झीलों की मिट्टी से बनाये गणपति ही पूजा के योग्य होते है” – उक्त विचार गणेश चतुर्थी के अवसर पर आलोक संस्थान के आलोक सी.सै. स्कूल, हिरण मगरी में छात्रों को सम्बोधित करते हुये आलोक संस्थान के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमावत ने कहे।
पूजन के सम्बंध में डॉ. कुमावत ने कहा कि शास्त्रों में इस प्रकार का कोई विधान नहीं है कि कागज, प्लास्टर ऑफ पेरिस अथवा लकड़ी की मूर्ति बनाकर इन दस दिनों में पूजन किया जाय। शास्त्रों में इस बात का स्पष्ट संकेत है तालाब में जो बहकर आई हुई मिट्टी होती है उस आठ इंच की मिट्टी को ही निकालकर गणपति बनाये जाते हैं और उन्हीं गणपति का पूजन शास्त्रोचित उचित व मान्य है।
यही पूजन पार्थिव पूजन के रूप में माना जाता है। तालाब से 8 इचं तक लाई मिट्टी पुनः तालाब में जाकर विसर्जित करते है जिससे न तो प्रदूषण फैलता है और तालाब की मिट्टी पुनः तालाब में चली जाती है।
इस दृष्टि से हमें पुनः विचार करना चाहिये और यह संदेश आम जन तक जाना चाहिये। पर्यावरण की दृष्टि से हमारे शास्त्रों में कितना संतुलित विधान है जिसे लोग जान नहीं पा रहे हैं।
जीवन प्रबंधन के सम्बंध में डॉ. कुमावत ने कहा कि गणपति के मस्तिक्ष की तरह हमारे विचारों को व्यापक बनाना होता है। जिस तरह से गणपति का मस्तिक्ष विशाल है, उसी तरह खुले विचारों से ही व्यक्ति जीवन को प्रभावी बना सकता है। गणपति की आँखे सूक्ष्म है जो एक पेनी दृष्टि को प्रदर्शित करती है। उन्होंने कहा कि गणपति के कान बड़े है जो इस बात का द्योतक है कि हमें सभी की बात सुननी चाहिये लेकिन हमें सदैव सतर्क रहना चाहिये जिससे दूर से आने वाली बाधा को हम तेजी से भाप सके।
उन्होंने यह भी कहा कि गणपति मोदक प्रिय है। जो व्यक्ति सदैव मीठा बोलेगा अपनी ओर लोगों को आकर्शिक करेगा वही व्यक्ति जीवन में सफल होगा। यदि आपके पास शुद्ध विचार है, मोदक की तरह आपके पास मीठे बोल है तो दूसरे को आकर्षित करेंगे।
एक हाथ में अंकुश इस बात का द्योतक है कि यदि कोई गलत है, अनुचित व्यवहार करता है तो उसके लिये अंकुश भी जरूरी है। एक पांव जमीन पर और एक पांव ऊपर की ओर है। यानि ऊंचे विचारों को प्राप्त करने के लिये हमें गणपति की तरह एक पांव जमीन पर रखना चाहिये।
मूशक गणपति का वाहन है यानि छोटे से छोटे व्यक्ति को भी काम का समझना चाहिए। मूशक छोटा होते हुये भी जाल को भी काट सकता है, शेर को भी हरा सकता है यानि हम अपने जीवन में किसी को भी छोटा नहीं समझें।
सूंड बड़ी है जो इस बात का द्योतक है कि हम दूर से किसी बात को समझ सके। किसी समस्या को हम महसूस कर सके। विशालता इस बात की द्योतक है कि शरीर कितना भी बड़ा हो हम अपने जीवन में प्रगति चाहते है तो हमें निरन्तर कर्म करते रहने चाहिये।
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