लोक कला मण्डल में हुआ गवरी नृत्य
मेवाड़ के पारम्परिक जनजाति लोक नृत्य नाट्य ’’गवरी’’ को विशिष्ट पहचान दिलाने के उद्देश्य से जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, उदयपुर एवं माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के तत्वावधान में बुधवार को भारतीय लोक कला मण्डल में देवाली गॉव के गवरी कलाकारों ने सभी का मन मोह लिया।
Gavri at lok kala mandal
मेवाड़ के पारम्परिक जनजाति लोक नृत्य नाट्य ’’गवरी’’ को विशिष्ट पहचान दिलाने के उद्देश्य से जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, उदयपुर एवं माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के तत्वावधान में बुधवार को भारतीय लोक कला मण्डल में देवाली गॉव के गवरी कलाकारों ने सभी का मन मोह लिया।
टीआरआई निदेशक बाबूलाल कटारा ने बताया कि विभाग की ओर से आमजन एवं पर्यटकों के लिए गवरी का शुभारंभ बुधवार सुबह लोककला मण्डल से हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय लोक कला मण्डल के मानद सचिव रियाज तहसीन एवं सहायक निदेशक गोवर्धन सामर थे। मुख्य अतिथि सीईओ कमल नमय वदोनी थे। कार्यक्रम स्थल पर गवरी से संबंधित जानकारी हेतु विशेष स्टॉल लगाई गई। गवरी का स्थानीय जनता एवं देशी-विदेशी पर्यटकों ने भरपूर आनंद लिया और विभिन्न पात्रों को कैमरें में कैद किया। कलाकारों ने कालूकीर, गोमा मीणा, कान गुजरी, राजा-रानी, लाखा बंजारा आदि पात्रों का मंचन किया।
gavri at Lok kala mandal
भारतीय लोक कला मण्डल के तुलसीराम गमेती ने बताया कि इसी क्रम में गुरुवार को गोगुन्दा के मन्दराडा गांव के कलाकारों द्वारा गवरी नृत्य का मंचन किया जाएगा।
गवरी का महत्व
गवरी मेवाड़ का पारंपरिक लोक नृत्य है जो मेवाड़ के भील समुदाय द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसमें भील समुदाय के लोग सवा महिने तक विशेष व्रत का पालन करते है। यह नृत्य भगवान शिव एवं पार्वती सहित विभिन्न पौराणिक कथाओं के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है। इसमें कलाकार विभिन्न पात्रों के माध्यम से देव आराधानाओं के साथ नृत्य करते है एवं आमजन एवं पर्यटकों के लिए मनोरंजन भी करते है।
Gavri Artist
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