खूब तौफीक दे हर कलमकार को, नफरतें छोड कर थाम ले प्यार को…….


खूब तौफीक दे हर कलमकार को, नफरतें छोड कर थाम ले प्यार को…….

र्यटकों के पसंदीदा शहर एवं सुरम्य झीलों की नगरी उदयपुर का 465वां स्थापना दिवस उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया गया। इस मौके पर सूचना केन्द्र के मुक्ताआकाशी रंगमंच पर नवकृति संस्था व सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित आकर्षक मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन कर कवियों एवं शायरों ने श्रोताओं को देर रात तक टस से मस नहीं होने दिया। श्रोताओं एवं दर्शकों ने कवियों व शायरों द्वारा प्रस्तुत काव्य पाठ एवं शेरों-शायरियों के माध्यम से तालियों तथा वाह-वाही के संग दाद दी।

 
खूब तौफीक दे हर कलमकार को, नफरतें छोड कर थाम ले प्यार को…….
पर्यटकों के पसंदीदा शहर एवं सुरम्य झीलों की नगरी उदयपुर का 465वां स्थापना दिवस उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया गया। इस मौके पर सूचना केन्द्र के मुक्ताआकाशी रंगमंच पर नवकृति संस्था व सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित आकर्षक मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन कर कवियों एवं शायरों ने श्रोताओं को देर रात तक टस से मस नहीं होने दिया। श्रोताओं एवं दर्शकों ने कवियों व शायरों द्वारा प्रस्तुत काव्य पाठ एवं शेरों-शायरियों के माध्यम से तालियों तथा वाह-वाही के संग दाद दी। कवि सम्मेलन की शुरूआत पुष्कर गुप्तेश्वर द्वारा प्रस्तुत की गई सरस्वती वन्दना वीणा वादनी जय हो मां… से हुई। मुशायरा व कवि सम्मेलन में जनाब इक़बाल हुसैन ’’इकबाल’’ ने ’’खूब तौफीक दे हर कलमकार को, नफरतें छोड कर थाम ले प्यार को…’’, खुर्शीद अहमद खुर्शीद ने गजल ’ ’कभी रोकर हंसाता है, कभी हंस कर रूलाता है, यह दस्तूरे जमाना है, न होना है वह होता है…’’ के साथ ही उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द की बात करते हुए श्रोताओं को बांधे रखा। आबिद अदीब ने ’’मुंह देखने की कोई भी हिम्मत न कर सका, आईना हाथ में लिए फिरता रहा हूं में’’, राव अजात शत्रु ने ’ यहां उदयसागर से आता है सूरज, पीछोला में फिर डूब जाता है सूरज, इसकी झीलों में महोब्बत के फूल खिलते हैं, इसके मौसम के बहारों के पते मिलते हैं…’ , पुष्कर गुप्तेश्वर ने ’अव्वल आला शहर उदयपुर, झीलों वाला शहर उदयपुर…’’, डॉ. प्रमिला चण्डालिया ने ’’ अहसास जिंदगी को नया दे गया कोई, अंदाज जिंदगी को नया दे गया कोई, थी कब से बंद खिड़कियां मेरे मकान की, फूलों की गंध ताजी हवा दे गया कोई…’’, दीपक नगायच ’’रोशन’’ ने ’’मरासिम में रखो थोड़ी बहुत कड़वाहटें तुम भी, बहुत मीठा भी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता…’’ श्रीमती आशा पाण्डे ओझा ने ’’ओझा कोई फूंक दें, इस पर ऐसा मंत्र, कोमा से बाहर निकल, आये ये गणतंत्र…’’, गोैरीकांत शर्मा ने ’’मेवाड़ की पुण्य धरा, झीलों के शहर में हूं…’’, आईना उदयपुरी ने ’’कोशिशे तो बहुत की जी जान से, पर न बुझ पाया दिया तूफान से…’’, श्रीमती कुमुद चौबीसा ने ’ ’मौसम ने फैलाया बाहों का हार, कर लिया जो फूल ने श्रृंगार, गौरी का दर्पण से बदला व्यवहार कर लिया जो फूल ने श्रृंगार…’’, श्रीमती किरण बाला जीनगर ने ’’हे म्हारे जीव री जड़ी यो म्हारो प्यारो राजस्थान... के साथ ही गजल ’’तू सियाही में छुपा दे मुझको…’’ अरूण त्रिपाठी ने ’’हौसलों के साथ ही जिंदगी गुजारी जाती है, वक्त के रहते ही गलतियां सुधारी जाती है…’’, श्रीमती अनिता भाणावत ’’अन्ना’’ चन्द्रेश खत्री ने ’’औरत यदि विश्वास से भर जाए, तो डर जाता है आदमी, उसे हर पल कमजोर बनाता है आदमी, औरत के सशक्तिकरण की बाते मंच से करता रहे, अपने ही घर में उसे डराता है आदमी… घनश्याम लाल दरक ने ’’मां मैं तो चाहती थी जीना कहां ले आयी, अस्पताल नहीं कत्लखाना है ये मायी…’’ के साथ् ही सागरमल सर्राफ ’’सागर’’, डॉ. इस्हाक फ़ुरक़त, चावण्डसिंह ’’विद्रोही’’, डॉ.मधु अग्रवाल, अमृता मेहता आदि ने काव्य-पाठ एवं मुशायरों की प्रस्तुतियां देकर श्रोताओं को प्रभावित किया। कवि सम्मेलन का संचालन राव अजातशत्रु ने किया। धन्यवाद की रस्म उप निदेशक गौरीकान्त शर्मा ने निभाई। इस आयोजन में समारोहध्यक्ष नगर निगम उदयपुर के महापौर चन्द्रसिंह कोठारी एवं विशिष्ट अतिथि संरक्षक नवकृति संस्था हाजी शब्बीर के.मुस्तफा का संस्थाध्यक्ष डॉ. प्रमिला चण्डालिया ने अपनी टीम के संग स्वागत-सत्कार किया। इस मौके पर सुखाडि़या विश्वविद्यालय उर्दू विभाग के सेवानिवृत डॉ. रईस अहमद, जेआरटी इंस्टीट्यूट के प्रिन्सिपल सत्यपाल मेड, आकाशवाणी के सेवानिवृत उपनिदेशक माणिक आर्य, समाजसेवी श्यामजी रावत मंगलआर्ट की विशेष उपस्थिति रही।

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