हरि सिंह को कृषि अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि


हरि सिंह को कृषि अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय ने हरि सिंह को दक्षिणी राजस्थान में समन्वित कृषि प्रणालियों का आर्थिक विश्लेषण विषय पर शोधकार्य के लिए पीएचडी की उपाधि प्रदान की है। हरि सिंह ने यह शोधकार्य राजस्थान कृषि महाविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र एवं प्रबन्धन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एस.एस.बुरडक के निर्देषन में पूर्ण किया है।

 
हरि सिंह को कृषि अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय ने हरि सिंह को दक्षिणी राजस्थान में समन्वित कृषि प्रणालियों का आर्थिक विश्लेषण विषय पर शोधकार्य के लिए पीएचडी की उपाधि प्रदान की है। हरि सिंह ने यह शोधकार्य राजस्थान कृषि महाविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र एवं प्रबन्धन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एस.एस.बुरडक के निर्देषन में पूर्ण किया है।

दक्षिणी राजस्थान के चित्तौड़गढ़ (गैर आदिवासी) तथा बांसवाड़ा (आदिवासी) जिले के वर्षा आधारित एवं सिंचित दशाओं में मौजूदा कृषि प्रणालियों को पहचानने और इन खेती प्रणालियों से लागत व प्रतिफल, आय, रोजगार एवं किसानों द्वारा बाधाओं का सामना करने के उद्देश्यों से अध्ययन किया गया। अधिकतम् किसानों द्वारा कृषि प्रणाली-फसल के साथ पशुधन पालन को अपनाया ।

दोनो जिलों में सबसे अधिक आय कृषि प्रणाली तृतीय से प्राप्त हुई जिनमें फसल बकरी पालन व डेयरी घटकों के कारण चित्तौड़गढ़ जिले में रुपये औसतन प्रति किसान 80 हजार तथा बॉंसवाड़ा जिले में रुपये 58 हजार शुö आय प्राप्त हुई जबकि इस प्रणाली की सकल लागत भी सबसे अधिकतम् थी।

अध्ययन क्षैत्र में उत्पादन को अधिकतम् और कुल आय बढ़ाने के लिए संसाधनों की अधिक से अधिक दोहन की पर्याप्त गुंजाइश है। डॉ. हरि सिंह ने अपने शोधकार्य मे पाया कि दोनो जिलो में दोनों दशाओं में फसल उत्पादन में किसानों की सबसे बड़ी बाधा अच्छी गुणवत्ता के बीजों की कमी, गुणवत्ता बीजों की अधिक लागत और मुख्य फसल ऋतु में कृषि श्रम की उपलब्धता की कमी थी।

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