सर्वाधिक मतों के खजाने हरिदेव जोशी के खाते चढ़े
आदिवासियों के मसीहा, राजस्थान के वरिष्ठ कांग्रेस नेता, असम एवं मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथा तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में नेतृत्व करने वाले हरिदेव जोशी एकमात्र ऐसे विधायक रहे जिन्होंने विधानसभा का 10 बार चुनाव लड़ा और दसों ही बार विजय हासिल कर विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
आदिवासियों के मसीहा, राजस्थान के वरिष्ठ कांग्रेस नेता, असम एवं मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथा तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में नेतृत्व करने वाले हरिदेव जोशी एकमात्र ऐसे विधायक रहे जिन्होंने विधानसभा का 10 बार चुनाव लड़ा और दसों ही बार विजय हासिल कर विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
हरिदेव जोशी ने मेवाड़ एवं वागड़ से बहकर अरब सागर में जानेवाली नदियों के पानी को बांसवाड़ा में माही नदी पर बांध बनवाकर आदिवासियों को माही रूपी गंगा की सौगात दी। जोशी आदिवासियों के लिए भगीरथ के रूप में शताब्दियों तक जाने जाते रहेंगे।
जोशी ने बांसवाड़ा जिले की घाटोल सीट से दो एवं बांसवाड़ा सीट से 7 बार चुनाव लड़ विजय हासिल की एवं एक बार जोशी ने डूंगरपुर क्षेत्र से चुनाव लड़ विजयपताका फहराई। यहां यह उल्लेखनीय है कि जोशी न केवल राजस्थान के अपितु समूचे देश के एकमात्र ऐसे विधायक थे जो 1952 के प्रथम आम चुनाव से 1993 के दसवें विधानसभा चुनाव तक निरन्तर चुने जाते रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि उनके जीवनकाल में उन्होंने 1952 से लेकर 1993 तक दसों बार चुनाव लड़ा और दसों ही बार विजयश्री हासिल कर तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया।
प्रथम बार 1952 के विधानसभा चुनाव में जोशी डूंगरपुर क्षेत्र से चुनाव लड़ निर्दलीय राजेशत्री सज्जन सिंह को 15 हजार 989 मतों से पराजित कर विधानसभा में पहुंचे। तत्पश्चात इन्होंने अपना क्षेत्र बदल बांसवाड़ा जिले की घाटोल की ओर रूख किया। यहां से लगातार 1957 एवं 1962 में चुनाव लड़ निर्दलीय केशवचंद्र एवं एस.ओ.सी. के नारायण को क्रमश: 8 हजार 876 एवं 9 हजार 191 वोटों से मात दे विधानसभा में पहुंच क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
तीसरे विधानसभा चुनावों के पश्चात जोशी ने पुन: अपना चुनावी क्षेत्र बदला और बांसवाड़ा सीट से भाग्य आजमाया। यहां से जोशी ने सर्वाधिक मृत्यु पाने तक 7 बार 1967, 1972, 1977, 1980, 1985, 1990 एवं 1993 में चुनाव लड़ा और हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वी को मुंह की खिलाई।
सन् 1967 एवं 1977 में इन्होंने एस.एस.पी. के उम्मीदवार केशवचंद्र एवं 1972 में एस.एस.पी. के विजयलाल को क्रमश: 12 हजार 99, 17 हजार 586 एवं 8 हजार 695 मतों से पराजित किया। उल्लेखनीय है कि, 1977 की जनता लहर भी इन्हें अपने से हटा नहीं पाई। इसके बाद चारों चुनावों 1980, 1985, 1990 एवं 1993 में जोशी का मुकाबला प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा से रहा।
सन् 1980 में इन्होंने पातरे को 6 हजार 718, 1985 एवं 1990 में मनीलाल बोहरा को 8 हजार 81 एवं 11 हजार 624 तथा अपने जीवनकाल के अंतिम 1993 के चुनाव में भवानी जोशी को 26 हजार 376 मतों के अंतर से हराया था।
जोशी मई 1962 में कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष बने थे; वे प्रदेश कांग्रेस के मुखपत्र कांग्रेस संदेश साप्ताहिक के वर्षों तक प्रधान संपादक तथा दैनिक नवयुग के प्रकाशक व प्रधान सम्पादक रहे।
2 जून 1965 को श्री जोशी सुखाडिय़ा मंत्रीमंडल के प्रथम बार कैबिनेट मंत्री नियुक्त किये गये; तब से 11 अक्टूबर 1973 को प्रथम बार मुख्यमंत्री बनने तक सुखाडिय़ा और बरकतुल्ला खां सरकारों में उद्योग, खनिज, सार्वजनिक निर्माण, परिवहन, सामुदायिक विकास एवं पंचायत, बिजली, सिंचाई, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा जनसम्पर्क आदि विभागों में मंत्री रहे।
दसवीं विधानसभा में जोशी प्रतिपक्ष के पुन: नेता चुने गये लेकिन अपने गिरते स्वास्थ्य के कारण त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने 28 मार्च 1995 को बम्बई के बाम्बे अस्पताल में अंतिम सांस ली।
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