शरद रंग की सुरीली शुरूआत, सुरों में प्रस्फुटित हुई लोक संस्कृति
यहां हवाला गांव स्थित शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से पहली बार आयोजित उत्सव ‘‘शरद रंग’’ की शुरूआत ‘‘फोक फ्यूज़न से बुधवार को हुई जिसमें राजस्थानी व गुजराती लोक संगीत के साथ-साथ अन्य सांगीतीय सम्मिश्रण देखने व सुनने को मिला। उत्सव में ही विभिन्न राज्यों के पाक शिल्पियों ने शिल्पग्राम के बाजार को लजीज़ व्यंजनों की महक से महका दिया।
यहां हवाला गांव स्थित शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से पहली बार आयोजित उत्सव ‘‘शरद रंग’’ की शुरूआत ‘‘फोक फ्यूज़न से बुधवार को हुई जिसमें राजस्थानी व गुजराती लोक संगीत के साथ-साथ अन्य सांगीतीय सम्मिश्रण देखने व सुनने को मिला। उत्सव में ही विभिन्न राज्यों के पाक शिल्पियों ने शिल्पग्राम के बाजार को लजीज़ व्यंजनों की महक से महका दिया।
शरद ऋतु के आगमन को कलाओं के साथ मनाने तथा खान पान के व्यंजनों से लोगों को रूबरू करवाने के लिये केन्द्र द्वारा उदयपुर में पहली बार आयोजित इस उत्सव में कलाओं के रंग दोपहर से ही शिल्पग्राम में नजर आने लगे। दोपहर में कई पर्यटक शिल्पग्राम पहुंचे और खान-पान का लुत्फ उठाया। हाट बाजार में मराठी खान पान, के साथ-साथ गुजराती, बिहारी, पंजाबी, लखनवी तथा हरियाणवी फूड स्टाूल लगाये गये है। जिनमें छाला कुलछा, वडा पाव, दाबेली, खमण-ढोकला लिट्टी चोखा, जलेबा, अवधी मिठाईयाँ प्रमुख है। दोपहर में लोगों ने जहां बंजारा मंच पर लोक कला प्रस्तुतियों का निहारा वहीं आॅर्केस्ट्रा पर संगीत की धुनों को सुनने कई प्र्यटक मौजूद थ व लोक ने लयबद्ध तालियों से संगीत में लयकारी देने का काम किया।
शिल्पग्राम के मुक्ताकाशी रंगमंच ‘‘कलांगन’’ पर शाम ढलते मंच रंग बिरंगी रोशनियों से जगमगा उठा तथा अहमदाबाद की संस्था म्यूजिका काॅलेब्रेटिव्स के कलाकारों ने ‘‘फोक फ्युज़न’’ में अपनी सुरीली प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन जीत लिया।
रंगमंच पर अहमदाबाद के प्रसिद्ध कलाकरा निशित मेहता के निर्देशन में फोक फ्यूजन की शुरूआत प्रसिद्ध कच्छी कलाकार मुरालाला के गायन से हुई। अपने परिवार की ग्यारहवी पीढ़ी के गायक मुरालाला अपने साथ सवा सौ साल से अधिक वर्ष पुराना साज जिसे उनके पुरखे बजाते थे ‘‘संतार’ ले कर आये। उन्होंने संतार के वादन के साथ गणपति स्तुति ‘‘सारा पेल्या किनको सिमरिये किनका लीजे नाम…’’ सुरीले अंदाज में पेश किया। इसके बाद अक्षत पारीक और हिरल ब्रम्हभट्ट ने सुरीले अंदाज में राजस्थानी मांड ‘‘केसरियो बालम’’ सुनाया तो दर्शक लोक संगीत की सवर लहरियों में लीन से हो गये। इसके बाद अक्षत पारीके ने दीप्पनीता आचार्य के साथ मीरा बाई के भजन ‘‘थानै करे को लोक शैली व बाद में ‘‘भाई सांवरे रंगराजी’ को शास्त्रीय यौली में शैली में पेश किया। दीपान्नीता द्वारा पश्चिम बंगाल की बाउल शैली में ‘‘तोरा बोल शोहोचारी सुरीले अंदाज में प्रस्तुत कर दर्शकों को बांग्ला संगीत की स्वार लहरियों से रूबरू करवाया।
इसके बाद मुरालाला मारवाड़ी, भूमिका शाह और दीपन्नीता आचार्य ने ‘‘थार’’ पर आधारित तीन अप्रतिम रचनाएँ ‘‘छड़लो’’ (कच्छी) ‘‘तारी आँख नो आफणी’’ (गुजराती) और एन आनो मालो (बांग्ला) में पेश कर गायन के वैविध्य से कला रसिको को मंत्र मुग्ध सा कर दिया। इसके बाद भूमिक शाह ने गुजराती भक्ति गीत ‘‘मेलड़ी’’ सुनाया तो दर्शक झूम उठे।
इस अवसर पर मूरालाला, हिरल और भौमिक ने कच्छ का महिमा गीत ‘‘ कच्छड़ो घूमो’’ में कच्छ अंचल की महिमा का बखान किया। इसके अलावा गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की रचना ‘‘एकला चालो रे’’ और हृदय आमार नाचे रे…’’ तथा गुजरात के कवि जवेरचंद मेघाणी की रचना व ‘‘मन मोर बनी थनगाट करे’’ सूनाया तो दर्शकों ने करतल ध्वनि से कलाकारों का अािवादन किया।
कार्यक्रम में हीरल ब्रह्मभट्ट प्रस्तुत गुरू वंदना तथा प्रसिद्ध पंजाबी गीत ‘‘जुगनी’’ में हीरल ने दर्शकों को झुमाया व उनसे एक संवाद स्थापित किया। दर्शकों ने करतल ध्वनि से कलाकार का साथ भी दिया।
कार्यक्रम की आखिरी प्रस्तुति समवेत सवरों में थी जिसमें कलाकारों ने प्रसिद्ध गीत जमालो व दमादम मस्त कलंदर से दर्शकों में जोश का संचार किया। म्यूजिका कोलोबे्रटिज की इस प्रस्तुति में की बोर्ड पर नयन कापड़िया, बेस गिटार पर रौनक पंडित, डूम पर दिव्यांग अरोड़ा तथा ताल वाद्यों पर आकाश भट्ट और निशित मेहता ने संगत की। इससे पूर्व वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन, केन्द्र निदेशक फुरकान खान, विश्व विजय सिंह तथा सुधांशु सिंह ने दीप प्रज्ज्वलित किया।
पांच दिवसीय शरद रंग के दूसरे दिन शाम को रंगमंच पर पुणे की संस्था नीस एन्टरटेनमेन्ट्स द्वारा ‘‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’’ पर विशेष प्रस्तुति मुख्य आकर्षण का केन्द्र होगी।
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