ग्रामीण परिवेश में पशुशक्ति का दोहन उपयोगी
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संगठक अभियांत्रिकी एवं तकनीकी महाविद्यालय के सभागार में अखिल भारतीय समन्वित परियोजना की 14वी द्विवार्षिक कार्यशाला का प्रारम्भ आज प्रातः हुआ।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संगठक अभियांत्रिकी एवं तकनीकी महाविद्यालय के सभागार में अखिल भारतीय समन्वित परियोजना की 14वी द्विवार्षिक कार्यशाला का प्रारम्भ आज प्रातः हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर के पूर्व कुलपति प्रो. के एन नाग ने की । कार्यक्रम के विषिष्ठ अतिथि आई सी ए आर के पूर्व उपमहानिदेषक एवं एस के एन कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एन एस राठौड़ थे। आई सी ए आर के सहायक महा निदेशक डा. कंचन के सिंह ने समारोह की अध्यक्षता की ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में डा. पी एल मालीवाल अनुसंधान निदेशक ने स्वागत उद्बोधन में बताया कि वर्तमान में स्थापित लगभग 650 कृषि विज्ञान केन्द्र, जिनकी संख्या इस वर्ष तक लगभग 750-800 होने की संभावना हैै, के माध्यम से भी कृषि में पशु ऊर्जा शक्ति का बेहतर उपयोग करने की गतिविधियॉं संचालित की जानी चाहिये।
महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. बी पी नन्दवाना ने कालेज की उपलब्धियांे का जिक्र करते हुए बताया कि महाविद्यालय देश का विख्यात अभियांत्रिकी महाविद्यालय है और वर्ष 2014 में महाविद्यालय ने स्वर्ण जयन्ति वर्ष मनाया है । महाविद्यालय को एन आई टी टी आर चण्डीगढ़ द्वारा उत्तर भारत के सर्वश्रेष्ठ अभियांत्रिकी महाविद्यालय से सम्मानित किया गया है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. के एन नाग ने बताया कि कृषि के क्षैत्र में कृषि अभियंताओं को कृषि उत्पादन प्रक्रिया में अनेक कठिनताओं का सामना करना होता है । उन्होने कृषि अभियंताओं को कृषि के विभिन्न आयामों के लिए ठोस पेकेज तैयार करने का सुझाव दिया । उन्होने कहा कि हमें निर्माण सामग्री व उनकी उपयोगिता तथा विभिन्न तकनीकों के संकलन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। कृषि अभियांत्रिकी विशेषज्ञों द्वारा उन्नत पशु चलित यंत्रों का विकास एवं परीक्षण सभी क्षैत्रों में किया जाना आवश्यक है जिसके लिये अखिल भारतीय समन्वित परियोजना के माध्यम से कृषि क्षैत्र-परिधि में अधिकाधिक उपायोगिता को बढ़ावा देना चाहिये।
विशिष्ट अतिथि आई सी ए आर के पूर्व उप महानिदेशक व पूर्व कुलपति एस के एन कृषि विष्वविद्यालय डा. एन एस राठौड़ ने कृषि यंत्रीकरण के युग में जैविक व पशु ऊर्जा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लघुजोत में उनकी उपयोगिता पर बल दिया एवं उन पर और अनुसंधान की आवश्यकता बताई। केन्द्र सरकार द्वारा कृषि में उन्नयन हेतु तथा किसानों के आर्थिक विकास के लिये खाद्य प्रसंस्करण तथा भण्डारण, नवीनीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतो का दोहन पर विशेष प्रावधान किया गया है ।
परियोजना समन्वयक सी आई ए ई भौपाल के डा. एम दिन ने परियोजना की द्विवार्षिक कार्यशाला के आयोजन पर प्रकाश डालते हुए परियोजना का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया एवं बताया कि यह परियोजना देश के 13 केन्द्रो पर संचालित की जा रही है।
परियोजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित है। उन्होने परियोजना के आगामी वर्षो में किये जाने वाले कार्यक्रमों पर भी प्रकाश डाला। परियोजना में कृषि कार्यो में उपयोगी पशु बैल, भैस, ऊट, मिथुन, याक, गंदर्भ इत्यादि के उन्नयन व उनसे प्राप्त ऊर्जा के बेहतर उपयोग व अपशिष्टों के जैविक उपयोग पर अनुसंधान केन्द्रीत किया गया है ।
इस अवसर पर विभिन्न प्रकाशनों व पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष सहायक महानिदेषक डा. के. के सिंह ने बताया कि खाद्य प्रसंस्करण तथा कृषि आधुनिकीकरण के लिए केन्द्र सरकार की ओर से आर्थिक मदद की कोई कमी नही है। मानव श्रम तथा ट्रेक्टर पावर की तुलना में पशु शक्ति ऊर्जा हमारे देश में अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है।
पशु जनसंख्या में लगातार गिरावट आने के बावजूद मौजूदा पशु शक्ति का दोहन बढ़ाने से पर्यावरण संरक्षण तथा उत्पादकता वृद्धि की चुनौती का सामना किया जा सकता है ।
केवल जैव ऊर्जा (बायोमास एनर्जी) से चलित पशुशक्ति के बजाय डीजल चलित ट्रेक्टरों का बढ़ता उपयोग कृषि में बढ़ती लागत को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। कार्यक्रम के अंत में फार्म मषीनरी एवं पावर अभियांत्रिकी विभाग के अध्यक्ष डा. अभय कुमार महता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम में देश के 13 विभिन्न अनुसंधान केन्द्रो से कृषि विश्वविद्यालय से आये 50 कृषि अभियंताओं व कृषि वैज्ञानिकों ने भाग लिया । कार्यक्रम का संचालन डा. दीपक शर्मा ने किया ।
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