उदयपुर। समस्त गुर्जर गौड ब्राह्मण समाज की ओर से आयोजित हास्य कवि सम्मेलन देर रात तक चला। कवियों ने अपनी व्यंग्यात्मक एवं हास्य से भरपूर रचनाओं के जरिए श्रोताओं को हंसा हंसा कर लोट पोट कर दिया।
सेक्टर 4 स्थित अटल बिहारी वाजपेयी ऑडिटोरियम में मावली विधायक धर्म नारायण जोशी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित इस कवि सम्मेलन में प्रख्यात हास्य कवि सुनील व्यास ने अपने अनूठे अंदाज में राजस्थानी चुटीले व्यंग्यों से खूब हंसाया उन्होंने अपनी रचना- "गांव में रहेगा तो पिता के नाम से पहचाना जाएगा, शहर में आया तो मकान नम्बर से जाना जाएगा" सुना कर समाज में व्याप्त एक संवादहीनता का गहरा सन्देश दिया।
सूत्रधार और ओज और वीर रस के कवि तथा सिद्धार्थ देवल ने राष्ट्र प्रेम से जुड़ी अपनी ओजस्वी कविताओं से सब का मन जीत लिया। उनकी कविता-" शीश तान कर ये वितान बना था, उन सितारों से आसमान बना था, तब एक झोंका भी तूफ़ान बना था,तब जा कर ये हिंदुस्तान बना था। मन हो अगर तो ये मान लीजिए, आजादी का मूल्य पहचान लीजिये।" को श्रोताओं ने खूब पसन्द किया।
डॉ कुंजन आचार्य के श्रृंगार गीत -"प्रीत गीत के छंद छंद में बसती मन की आशा है, तन का पोर पोर लिखता यह सघन प्रेम की भाषा है" सुना कर बासन्ती मौसम में प्रेम रस घोला।
लोकेश महाकाली ने अपनी चुटीली और धारदार व्यंग्यों से गुदगुदाया साथ ही साथ संदेशपरक व्यंग्यों से सोचने पर मजबूर किया।
कानू पंडित ने मेवाड़ी के सहज हास्य को शब्दों में पिरो कर हंसी के फव्वारे छोड़े साथ ही बालिका शिक्षा पर आधारित अपनी कविता "रोज जल्दी उठ घर आंगन बुहार जाती,कौना कौना घर का संवार जाती बेटियां, कभी सीता बन वनवास भोग पति संग दुनिया के रावणों को तार जाती बेटियां" सुनाकर तालियां बटोरी।
मनोज गुर्जर ने -"मान जनक का जो ना करता, सुत दाग़ी हो जाता हैं । सच कहता हूँ सुनो पाप का, वो भागी हो जाता हैं। क्यों जाए हम मन्दिर मन्दिर, तात प्रभु का रूप यहाँ, जिसके सर पर हाथ पिता का, बड़भागी हो जाता हैं ।" सुना कर सामाजिक रिश्तों को मज़बूत बनाने के सन्देश दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत में समाज के अध्यक्ष राकेश जोशी, महासचिव विवेक पंचोली, उपाध्यक्ष प्रभात रंजन शर्मा तथा कोषाध्यक्ष योगेश उपाध्याय ने कवियों को मेवाड़ी पगड़ी पहना कर स्वागत एवं अभिनंदन किया। समाज अध्यक्ष राकेश जोशी ने कहा कि अब प्रतिवर्ष कवि सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
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