देश में खेल क्षेत्र में मेवाड़ का नाम रोशन करने वाले हिंगड़ नहीं रहें
50 एवं 60 के दशक में हाॅकी में विख्यात खिलाड़ी के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले श्री बुद्धिसागर जी हिंगड़ का 92 वर्ष की आयु में आज प्रातः निधन हो गया। विरोधी टीमों में चाइना वाॅल के नाम से प्रसिद्ध बुद्धिसागर जी हाॅकी एवं फुटबाल दोनों ही खेल में सेन्टर हाॅफ की पोजिशन पर खेलते थे। उनका खेल एवं स्टिक वर्क की दक्षता ख्यातिप्राप्त हाॅकी खिलाड़ी ध्यानचंद के समकक्ष रही थी।
50 एवं 60 के दशक में हाॅकी में विख्यात खिलाड़ी के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले श्री बुद्धिसागर जी हिंगड़ का 92 वर्ष की आयु में आज प्रातः निधन हो गया। विरोधी टीमों में चाइना वाॅल के नाम से प्रसिद्ध बुद्धिसागर जी हाॅकी एवं फुटबाल दोनों ही खेल में सेन्टर हाॅफ की पोजिशन पर खेलते थे। उनका खेल एवं स्टिक वर्क की दक्षता ख्यातिप्राप्त हाॅकी खिलाड़ी ध्यानचंद के समकक्ष रही थी।
मास्टर सा. के नाम से प्रसिद्ध श्री हिंगड़ ने 1945 में बाम्बे युनिवर्सिटी के हाॅकी के कप्तान रहे। 1948-49 मे राजपुताना युर्निवसिटी से बेस्ट प्लेयर का अवार्ड हाॅकी एवं फुटबाल दोनों में प्राप्त किया था और उन्हें हाॅकी मे स्टार एवं फुटबाल में कलर का सम्मान प्राप्त हुआ था। श्री हिंगड़ ने डिस्ट्रिक्ट हाॅकी एसोसिएशन का गठन किया तथा उदयपुर के केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं सचिव के साथ-साथ फतह सैकडरी स्कूल में विज्ञान विषय के अध्यापक रहे।
श्री हिंगड़ ने अपने जीवनकाल में खेलों को प्राथमिकता दी जिसके कारण वे न एक खिलाड़ी थे वरन् उन्हें खेल गुरू के रूप में भी याद किया जाता रहा। उन्होंने अपने जीवन में अनेक विद्यार्थियों को हाॅकी एवं फुटबाल का प्रशिक्षण दिया जिनमें से कुछ राष्ट्रीय एवं अन्तर राष्ट्रीय खिलाड़ी बने।
हाॅकी में स्वर्णिम सफलता के बाद खेल के गिरते स्तर को लेकर वे काफी चिन्तित रहते थे उनकी हमेशा यही इच्छा रहती थी कि काश आजादी पूर्व के हाॅकी के स्वर्णिम दिन वापस लौट आयें। उस जमानें में एक खेल में स्टार मिलना बहुत गर्व की बात हुआ करती थी लेकिन श्री हिंगड़ ने खेल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए एक ही कलेण्डर वर्ष में हाॅकी व फुटबाल में स्टार प्राप्त कर उदयपुर का नाम देश में रोशन किया था।
उन्हें इस बात पर गर्व रहा कि उनके द्वारा हाॅकी में सिखाया हुआ खिलाड़ी अब्दुल सिराज ने पाकिस्तान की ओर से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया। उस जमानें के खेलप्रेमियों ने इनके हाॅकी का खेल देख कर इन्हें चायना वाल से अलंकृत किया था। पैर में चोट लगने के बाद उन्होंने खेल से सेवानिवृति लेने के बाद मेडीकल व्यवसाय को अपना लिया था।
श्री हिंगड़ अपने पीछे पत्नी, तीन पुत्र राजकुमार, नितिन एवं डाॅ. नीरव हिगड़ – पुत्रवधु, दो पुत्री-दामाद, बहिन,भाणेज,पौत्र-पौत्रवधु,पड़पौत्र दोहित्र-दोहित्र वधु, सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गये है।
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