जनसहयोग से ही मानव का विकास संभव
मानव जन्म से लेकर मृत्यु तक समाज, राष्ट्र व आम जनता का किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग लेता ही है। जन सहयोग से मानव जीवन का विकास होता है। व्यक्ति सभी से अलग एकाकी होकर नही जी सकता। समाज-राष्ट्र उसकी मूल-भूत आवश्यकता है।
मानव जन्म से लेकर मृत्यु तक समाज, राष्ट्र व आम जनता का किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग लेता ही है। जन सहयोग से मानव जीवन का विकास होता है। व्यक्ति सभी से अलग एकाकी होकर नही जी सकता। समाज-राष्ट्र उसकी मूल-भूत आवश्यकता है।
उपरोक्त विचार आज श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि ‘कुमुद’ ने पंचायती नोहरा में चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किये। उन्होनें कहा कि मनुष्य जीवन के दीपक को बचाने के लिए हजारों हाथों ने बचाने में सहयोग दिया, तो मनुष्य का भी कर्तव्य है कि वह अन्य सेवा पात्र की सेवा करें। उन्होनें कहा कि मनुष्य को अपनी दैनिक चर्या में जन सेवा को भी स्थान देना चाहिये।
परस्पर सहयोग से हजारों दीन-दुखियों के दु:ख को ठीक किया जा सकता है। परस्पर सहयोग यह किसी भी सरकार या संस्था के सहयोग से भी अधिक पवित्र और महान होता है।
उन्होनें कहा कि किसी पीडि़त की सेवा करके आप किसी पर उपकार नही कर रहे हैं। जन सहयोग से आपका जीवन बना तो पीडि़त मानवता को सहानुभुति और सहयोग देना आपका नैतिक दायित्व व कर्तव्य है। पत्थर दिल व्यक्ति निर्दयी और कठोर होता है। जब वे कष्ट में होते हैं तब वे सहयोग तो चाहते है किन्तु किसी पीडि़त को सहयोग देना नही जानते हैं। यह अमानवीय व्यवहार है। सभा को श्रमण मुनि ने सम्बोधित किया कार्यक्रम का संचालन हिम्मत बड़ाला ने किया।
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