भौतिकवाद के इर्द-गिर्द घुमता मानवीय जीवन
भौतिकवाद के अतिप्रवाह के कारण आज मानव का पूरा जीवन अर्थ चक्र के इर्द गिर्द ही घूमने लग गया है। कला, बौद्धिकता आदि मानव की सारी प्रतिभाएं अर्थ के द्वारा परिभाषित होने लगी है। अर्थ सार्वोपरि हो गया है, यहां तक कि मानव का अंकन ही अर्थ से किया जानें लगा है।
भौतिकवाद के अतिप्रवाह के कारण आज मानव का पूरा जीवन अर्थ चक्र के इर्द गिर्द ही घूमने लग गया है। कला, बौद्धिकता आदि मानव की सारी प्रतिभाएं अर्थ के द्वारा परिभाषित होने लगी है। अर्थ सार्वोपरि हो गया है, यहां तक कि मानव का अंकन ही अर्थ से किया जानें लगा है।
उक्त विचार श्रमण संघीय महामंत्री श्री सौगाग्य मुनि कुमुद ने पंचायती नोहरा में आयाजित विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि आर्थिकता हमारे पूरे जीवन पर छा गई है। जीवन की प्रवृतियों में स्वतन्त्र नही रह गई है। आर्थिक परतन्त्रता के चलते सभी कुंठित है। मनुष्य की संवेदनाएं तक अर्थ के खूंटे में बंध गई है। जहां अर्थ सिद्ध होता है, व्यक्ति की प्रतिभा वही तक काम करती है। अर्थ का साधन तो मानव के साथ सदियों से जुड़ा है किन्तु अर्थ ही साध्य बन जाएगा ऐसा किसी ने सोचा नही था।
मनुष्य के पास जो अनमोल पदार्थ है उसका कोई मूल्य नहीं हो सकता। समय भी हमारे पास एक अनमोल निधि है यह हाथ में आता है चला जाता है विशेषता यह है कि समय जो गया फिर वह कभी वापस नही आता अब बताइये इसके सामने चक्रवर्ती का वैभव भी क्या टिकेगा ?
मुनि जी ने कहा कि मानव केवल अर्थ की सोचता है, परमार्थ की नही। यही कारण है कि मानव इन अनमोल उपलब्धियों का भी उपयोग नही कर पाता। वह तो अधिक सोच में ही इतना डूबा रहता है कि समय और बौद्धिकता भी कोई अर्थ रखती है ये भी अनेंक नये सर्जन प्रस्तुत किया करती है इस दिशा में उसका चिन्तन स्फुरित होता नहीं है। जीवन की प्रत्येक विधि का समय पर सर्जनात्मक विकास हो तभी जीवन की सार्थकता बन पाएगी। कार्यक्रम का संचालन हिम्मत बड़ाला ने किया व स्वागत अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार डंा्रगी ने किया।
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