मनुष्य अपूर्ण है तो उसका बनाया सिद्धांत कैसे पूर्ण होगाःनीलांजनाश्री
वासुपूज्य स्थित दादावाड़ी में साध्वी नीलांजना श्रीजी ने कहा कि परमात्मा में विश्वास रखो। पद्धति अलग अलग हो सकती है, परमात्मा तो एक ही है। विवेक और जागृति की खिड़कियां खुले तो कुछ अंदर आये। पालीताना, सम्मेदशिखर की कितनी ही सीढियां चढ़ जाओ लेकिन जब तक मन में यह विश्वास नही होगा कि जिनवाणी ही सत्य है, तब तक धरातल पर ही रहोगे। कुतर्क करते हैं तर्क नही करते। जिनवाणी वैज्ञानिक है, साबित हो चुकी है। जो व्यक्ति खुद अपूर्ण है, उसका बनाया सिद्धांत कैसे पूर्ण होगा। पहले किसी ने कुछ नियम दिए, बाद में और आज भी निरंतर प्रय
वासुपूज्य स्थित दादावाड़ी में साध्वी नीलांजना श्रीजी ने कहा कि परमात्मा में विश्वास रखो। पद्धति अलग अलग हो सकती है, परमात्मा तो एक ही है। विवेक और जागृति की खिड़कियां खुले तो कुछ अंदर आये। पालीताना, सम्मेदशिखर की कितनी ही सीढियां चढ़ जाओ लेकिन जब तक मन में यह विश्वास नही होगा कि जिनवाणी ही सत्य है, तब तक धरातल पर ही रहोगे। कुतर्क करते हैं तर्क नही करते। जिनवाणी वैज्ञानिक है, साबित हो चुकी है। जो व्यक्ति खुद अपूर्ण है, उसका बनाया सिद्धांत कैसे पूर्ण होगा। पहले किसी ने कुछ नियम दिए, बाद में और आज भी निरंतर प्रयोग होते हैं और उससे आगे की खोज करते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा पूर्ण है। पूर्ण का अर्थ केवलज्ञानी हैं। इसके बाद कुछ जानना, समझना बाकी नही रह जाता। टीवी सब जगह है। अलग अलग चैनल हैं। बटन दबाओ और चाहे जो चैनल देखो। दो चैनल एक साथ नही देख सकते। सुनाई देगा लेकिन कुछ पल्ले नही पड़ेगा। सब चैनल के एक एक शब्द सुनाई देगा लेकिन समझ कुछ नही आएगा। परमात्मा का केवलज्ञान ऐसा कि अनंत जीवों के अनंत भवों को देखते हैं। सारे विश्व के मनुष्यों जीवों के भव देखते हैं। केवलज्ञान आप के अंदर ही है। बाहर के दीपक की जरूरत नही अपने अंदर के दीपक को जलाओ, केवलज्ञान अंदर आए जागृत हो जाएगा।
साध्वीश्री ने कहा कि भगवान वो जो राग द्वेष से मुक्त हो। वीतराग के मंदिर में जाओ और दूसरे मंदिर में जाओ, उनकी मुद्रा देख लो। ये तो बाह्य स्वरूप हैं, अंदर की बातें बहुत हैं। त्रिरत्न सुदेव, सुगुरु और गौतम स्वामी ही सम्यक ज्ञान सम्यक दर्शन और सम्यक चारित्र का स्वरूप हैं।
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