उदयश्याम मंदिर: ऐतिहासिक धरोहर की उपेक्षा पर गहरी चिंता


उदयश्याम मंदिर: ऐतिहासिक धरोहर की उपेक्षा पर गहरी चिंता

वर्तमान में यह मंदिर अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व को खोता जा रहा है। अव्यवस्थित और असंवेदनशील निर्माण कार्यों ने इसके मूल स्वरूप को गहरी क्षति पहुँचाई है। अनियंत्रित निर्माण के कारण न केवल मंदिर की सुंदरता प्रभावित हुई है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक विरासत भी संकट में आ गई है।
 
UdayShyam Temple in Udaipur Demand to stop illegal construction activity in temple premises in Udaipur

उदयपुर फरवरी 09: महात्मा गांधी जीवन दर्शन समिति के जिला संयोजक पंकज कुमार शर्मा एवं उदयपुर होटल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष, पर्यटन विशेषज्ञ और लेखक यशवर्धन राणावत ने रविवार प्रातः 11:30 बजे उदयश्याम मंदिर का दौरा कर वहाँ की वर्तमान स्थिति का जायजा लिया। यह मंदिर, जो 16वीं शताब्दी की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है, चांदपोल के बाहर लेक पिछोला होटल और आमेट हवेली के बीच स्थित है।

वर्तमान में यह मंदिर अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व को खोता जा रहा है। अव्यवस्थित और असंवेदनशील निर्माण कार्यों ने इसके मूल स्वरूप को गहरी क्षति पहुँचाई है। अनियंत्रित निर्माण के कारण न केवल मंदिर की सुंदरता प्रभावित हुई है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक विरासत भी संकट में आ गई है।

शर्मा ने आगे कहा की मंदिर परिसर और आसपास अतिक्रमण एवं अव्यवस्थित संरचनाओं के कारण श्रद्धालुओं और पर्यटकों को दर्शन करने में असुविधा हो रही है। आधुनिक निर्माण कार्यों में पारंपरिक वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति सम्मान का पूर्णतः अभाव देखा जा सकता है, जिससे मंदिर की धार्मिक पवित्रता भी प्रभावित हुई है।

सबसे गंभीर चिंता गर्भगृह के पास शौचालय एवं झील किनारे बने अवैध किचन निर्माण को लेकर है, जिसे प्रशासनिक रोक के बावजूद पूरा कर लिया गया। यह न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है, बल्कि झील के प्राकृतिक सौंदर्य को भी क्षति पहुँचा रहा है। पर्यटन के नाम पर इस तरह के असंगठित विकास से शहर की धरोहरों को हानि पहुँच रही है।

शर्मा ने देवस्थान विभाग के उच्चाधिकारियों से अवैध निर्माण को तुरंत प्रभाव से बंद कराने एवं मंदिर की गरिमा को पुनः स्थापित करने की अपील की।

शर्मा ने कहा की उदयश्याम मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि उदयपुर की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है। प्रशासन की उदासीनता और अनियोजित विकास के कारण यह मंदिर अपनी पहचान खोने के कगार पर है। यदि शीघ्र उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह महत्वपूर्ण धरोहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए केवल एक स्मृति बनकर रह जाएगी। संरक्षण और संवर्धन की दिशा में ठोस प्रयास आवश्यक हैं, ताकि यह मंदिर अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व को पुनः प्राप्त कर सके।

मौके पर उपस्थित जयवर्धन सिंह चुण्डावत (मालिक, आमेट हवेली), नितेश सर्राफ, चित्रु देवासी और राजवीर ने भी इस गंभीर मुद्दे पर चिंता जताई।

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