अतीन्द्रिय ज्ञान ही प्रत्यक्ष ज्ञान: आचार्य कनकनन्दीजी
आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आचार्यश्री कनकनन्दी गुरूदेव ने प्रात:कालीन धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों को अतीन्द्रिय ज्ञान की महिमा बताते हुए कहा कि जो अनावरण रूप अतीन्द्रिय ज्ञान है उसके जैसे प्रज्ज्वलित अ
आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आचार्यश्री कनकनन्दी गुरूदेव ने प्रात:कालीन धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों को अतीन्द्रिय ज्ञान की महिमा बताते हुए कहा कि जो अनावरण रूप अतीन्द्रिय ज्ञान है उसके जैसे प्रज्ज्वलित अग्नि के अनेक प्रकारता को धारण करने वाले दाह्य (ईन्धन) दाह्यता का उल्लंघन न करने के कारण दाह्य ही हैं।
वैसे ही अप्रदेशी, सप्रदेशी, मूर्तिक, अमूर्तिक तथा अनुत्पन्न एवं व्यतीत पर्याय समूह, अपनी ज्ञेयत क उल्लंघन न करने से ज्ञेय ही है। इसलिए अतीन्द्रिय ज्ञान ही प्रत्यक्ष ज्ञान का स्वरूप है।
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