गरीब बच्चो को स्वावलम्बी बनाने के लिए इम्पिटस की अनूठी पहल
इम्पिटस संस्था ने आज सुखाड़िया सर्किल के आस पास बलून आदि बेचकर खुद के और अपने परिवार का पेट भरने वाले बच्चो और उनकी माताओ को स्वावलम्बी बनाने के लिए अनूठी पहल करते हुए ख्वाहिश नामक कार्यक्रम के तहत हस्तनिर्मित कागज़ (हैंडमेड पेपर) से बनने वाले इको फ्रेंडली केरी बेग बनाना सिखाया ताकि इन बच्चो को एक निश्चित रोज़गार भी मिला सके और साथ ही यह बच्चे अपनी पढाई लिखाई भी जारी रख सके।
इम्पिटस संस्था ने आज सुखाड़िया सर्किल के आस पास बलून आदि बेचकर खुद के और अपने परिवार का पेट भरने वाले बच्चो और उनकी माताओ को स्वावलम्बी बनाने के लिए अनूठी पहल करते हुए ख्वाहिश नामक कार्यक्रम के तहत हस्तनिर्मित कागज़ (हैंडमेड पेपर) से बनने वाले इको फ्रेंडली केरी बेग बनाना सिखाया ताकि इन बच्चो को एक निश्चित रोज़गार भी मिला सके और साथ ही यह बच्चे अपनी पढाई लिखाई भी जारी रख सके।
इम्पिटस संस्था की संस्थापक मंजू लक्ष्मी के अनुसार उनकी संस्था रोज़ाना सोमवार से शनिवार हर शाम सात से साढ़े सात बजे तक पढ़ाने लिखाने का कार्य अंजाम देती है। इन बच्चो में से तकरीबन पांच सात बच्चे रोज़ाना स्कूल भी जाने लग गए है। चूँकि यह बच्चे बहुत गरीब है और इनकी पहली प्राथिमकता अपने और अपने परिवार का पेट पालना और रोटी का जुगाड़ करना होता है। इसलिए यह बच्चे सुबह सवेरे चार बजे ही उठ जाते है और कूड़े करकट में से शराब और बियर की खाली बोतले इकट्ठी करते है ताकि उनको बेच कर कुछ रोटी का इंतेज़ाम किया जा सके। ऐसे में संभव है की यह बच्चे अपनी शिक्षा से ध्यान हटा ले और इन्ही कामो में अपना भविष्य तलाश करने लग जाए। अतः ज़रुरत है की इन बच्चो और उनके परिवारों को स्वरोज़गार मिल सके। इसलिए उनकी संस्था ने इस और ध्यान दिया और इन बच्चो को कुछ हुनर सीखाने की ठानी। हालाँकि इम्पिटस की यह पहल काफी छोटी है लेकिन फिर भी सराहनीय है।
इम्पिटस संस्था के इस कार्य में संस्थापक मंजू लक्ष्मी के साथ सोनू वर्मा, साहिल नाहर, शारदा सिंघल, रुबीना बानू, दीपांकर चतुर्वेदी, लविश अरोरा, कुलश्रेष्ठ, जुनैद हाश्मी, अंशुल जैन, सिद्धार्थ जावेरिया और विवेक चौधरी बखूबी साथ निभाते है।
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