सामाजिक पर्यावरण बनाने की महत्ती आवश्यकता : प्रो. मोदी
प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप वर्तमान समय में विश्व में तीव्रतम परिवर्तन हो रहे हैं। आज जीवन का दर्शन नए मूल्यों अैर दृष्टिकोण के संदर्भ में किया जा रहा है। इस कारण भारतीय समाज और संस्कृति की प्राचीन विशेषताएं परिवर्तित हो रही है और उनके स्थान पर नई विशेषताएं प्रतिस्थापना परिलक्षित हो रही है। इसके लिए जरूरी होगा कि सबसे पहले सामाजिक पर्यावरण का निर्माण किया जाए। हमें हमारे पुराने मूल्यों और संस्कारों को भूलना नहीं होगा। यह विचार इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसायटी के अध्यक्ष प्रो. ईश्वर मोदी ने 38वीं ऑल इंडिया सोशियोलॉजिकल कांफ्रेंस में रखे।
प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप वर्तमान समय में विश्व में तीव्रतम परिवर्तन हो रहे हैं। आज जीवन का दर्शन नए मूल्यों अैर दृष्टिकोण के संदर्भ में किया जा रहा है। इस कारण भारतीय समाज और संस्कृति की प्राचीन विशेषताएं परिवर्तित हो रही है और उनके स्थान पर नई विशेषताएं प्रतिस्थापना परिलक्षित हो रही है। इसके लिए जरूरी होगा कि सबसे पहले सामाजिक पर्यावरण का निर्माण किया जाए। हमें हमारे पुराने मूल्यों और संस्कारों को भूलना नहीं होगा। यह विचार इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसायटी के अध्यक्ष प्रो. ईश्वर मोदी ने 38वीं ऑल इंडिया सोशियोलॉजिकल कांफ्रेंस में रखे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं कुलपति प्रो. आईवी त्रिवेदी ने कहा कि सूचना क्रांति के इस युग में संचार माध्यमों ने भौगोलिक दूरियां तो समाप्त कर दी हैं पर भावनात्मक दूरियां बढ़ा दी है। यह विभेदीकृत विकास का एक ऐसा प्रारूप है जो हमारे सामने अनेक शंकाए उत्पन्न करता है। इससे पूर्व कंटेम्परेरी इंडियन सोसायटी : चैलेंज एंड रिस्पोंस विषयक पर आयोजित सेमिनार का शुभारंभ किया।
सुखाडिय़ा ऑडिटोरियम में हुए इस उद्घाटन समारोह में हजारों की संख्या में समाजशास्त्रीय विशेषज्ञ उपस्थित थे। इस अवसर पर मद्रास के प्रो. चिंतामणि लक्ष्मणा, पुणे के प्रो. उत्तम बी बोहित तथा सिरोही, राजस्थान के प्रो. केएल शर्मा को लाइफ टाइम अचिवमेंट प्रदान किया गया। उसके बाद तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ। इस अवसर पर कांफ्रेंस समन्वयक डॉ. बलवीरसिंह ने कांफ्रेंस की रूपरेखा समझाई एवं अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत अभिनंदन किया। वहीं प्रो. पूरणमल ने स्वागत भाषण दिया।
छाए रहे सामाजिक मुद्दे- सेमिनार के दौरान देश के विभिन्न स्तर पर से उठे सामाजिक मुद्दे छाए रहे। सेमिनार में दिल्ली में हुए दुष्कर्म पर भी बहस जोरों पर रही। इस अवसर पर किसी ने आरोपियों को फांसी देने की बात कही, तो किसी ने उनकी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन लाने का प्रयास करने की जानकारी दी। इसके अतिरिक्त दहेज प्रताडऩा, कन्या भ्रूण हत्या आदि कुकत्यों पर विचार विमर्श किया गया।
कांफ्रेंस समन्वयक प्रो. बलवीरसिंह ने बताया कि समाज में हुई एक घटना के बाद जनआक्रोश फैला और उन्होंने आरोपियों को मत्युदंड देने की मांग रखी है। अब आरोपी को यह दंड मिलना चाहिए या नहीं तथा उसके क्या परिणाम होंगे आदि बातों पर सोच विकसित करनी होगी। इस कांफ्रेंस में सभी समाजशास्त्री समाज में आए इन बदलावों के विभिन्न नजरियों का आदान प्रदान किया।
तकनीकी सत्रों में उभरे तथ्य 1. जुल्म, प्रताडऩा और उपेक्षा बढ़ी मिर्जापुर की कुसुम मेहता ने बताया कि तकनीकी व भौतिक समाज ने कुछ एक मोर्चाओं पर मात खाई है। समाज में जुल्म, प्रताडऩा व उपेक्षा बढ़ी है। वह भी हाईटेक होकर। ये नई सांचों में ढलकर सामने आ रही है। जीवन की संध्या बेला में कदम रखने वाले बुजुर्ग उपेक्षा एवं तिरस्कार के शिकार हो रहे हैं। वे टकटकी लगाए सरकारी सहायता, पेंशन अथवा देश विदेश के सहायता धनराशी की बाट जोहते हैं। इस दिशा में सोशल काउंसलरों, मनौवैज्ञनिकों व एनजीओ आदि की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
2. मानवाधिकार : विपरीत स्थिति में सुविवि की सुमित्रा शर्मा ने बताया कि मानवाधिकार का तात्पर्य है कि जाति, लिंग, धर्म व भाषा के आधार बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों को मानव अधिकार व मूलभूत स्वतंत्रत के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना। लेकिन वस्तुस्थिति बिल्कुल विपरित है। आज भी दलितों व महिलाओं को कई प्रकार की असुरक्षाओं व असमानताआं का सामना करना पड़ता है। दलित महिलाओं की स्थिति तो ओर भी बदतर है। जाति, वर्ग व लैंगिक संस्तरण में दलित महिला सबसे निम्रतम स्थान पर है।
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