इमरत रसूल बाबा के उर्स का कुल की रस्म के साथ समापन
शहर के ब्रह्मपोल बाहर स्थित दरगाह हजरत इमरत रसूल शाह बाबा के चल रहे तीन दिवसीय 128वें उर्स का समापन पीर मोहम्मद अली हाशमी साहब नागौरी (झुंझुंनू) की सरपरस्ती में गुरूवार को बाद नमाज अस्र सलातो-सलाम व दुआ के साथ हुआ।दरगाह कमेटी के नायब सदर मोहम्मद रफीक ने बताया कि हजरत इमरत रसूल शाह बाबा के तीन दिवसीय उर्स को सभी धर्मों के लोगों ने बड़ी अकीदत के साथ मनाया। तीन दिवसीय उर्स में विभिन्न
शहर के ब्रह्मपोल बाहर स्थित दरगाह हजरत इमरत रसूल शाह बाबा के चल रहे तीन दिवसीय 128वें उर्स का समापन पीर मोहम्मद अली हाशमी साहब नागौरी (झुंझुंनू) की सरपरस्ती में गुरूवार को बाद नमाज अस्र सलातो-सलाम व दुआ के साथ हुआ। दरगाह कमेटी के नायब सदर मोहम्मद रफीक ने बताया कि हजरत इमरत रसूल शाह बाबा के तीन दिवसीय उर्स को सभी धर्मों के लोगों ने बड़ी अकीदत के साथ मनाया। तीन दिवसीय उर्स में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। उर्स के चलते उदयपुर शहर व आस-पास के इलाकों के अकीदतमंदों ने उर्स में शिरकत की और बाबा के मजार पर चादर शरीफ व फुल पेश किए। बाबा के चाहने वालों ने जायरीनों के बीच लंगर व तबर्रूक का वितरण किया।
सुबह हुई कुरआन ख्वानी:
उर्स के तीसरे दिन के कार्यक्रमों का आगाज बुधवार सुबह 8.30 पर कुरआन ख्वानी से हुआ जिसमें काफी संख्या में लोगों ने कलामे पाक की तिलावत की। दोपहर बाद नमाज जौहर महफिल समां का आयोजन किया गया जिसमें कव्वाल पार्टियों ने नातिया कलाम व सूफियाना कलाम पेश किए।
महफिले समां का आगाज जावरा के कव्वाल मुजम्मिल हुसैन फजल हुसैन की पार्टी ने किया। जिन्होंने अपना कलाम – मिली है ठोकरे दर-दर पे सर झुकाने से, न जाने बन गये क्या तैरे दर पे आने से पढा और इसके बाद – इस दिल के बहलने की अब एक ही सूरत है, तुम इस के जरा कह दो हां तुझ से मोहब्बत है पर सामाईन से खुब दाद मिली।
सरफराज साबरी फराज जलालाबादी ने अजब है कैफ अजब है खुमार आंखों में, बसा हुआ है नबी का दयार आंखों में, खड़े हुए तैरे दर पे तैरे दर के फकीर, वफा की नज्र लिए अश्कबार आंखों में पढा और मैरे ख्वाजा मोईन मैरे ख्वाज मोईन कलाम सहित कई कलाम पेश किए। महफिले समां के आखिरी कड़ी में जयपुर के कव्वाल गुलाम हुसैन जयपुरी ने – मेरी नजरों से ओझल उनका जलवा हो नहीं सकता, किनारे से जुदा हो जाए दरिया हो नहीं सकता, या इमरत रसूल बाबा तैरे होते हुए गिर जाउं ऐसा हो नहीं सकता पढा जिसमें महफिल खाने में मौजूद लोग झूम उठे। कव्वाल पार्टियां ने अपने कई कलाम पेश किए।
दस्तारबंदी की रस्म अदा की
दरगाह कमेटी के सदर मोहम्मद युसफ ने पीर मोहम्मद अली हाशमी साहब नागौरी, दरगाह के गद्दीनशीन इकबाल हुसैन, नायब सदर मोहम्मद रफीक, हाजी मोहम्मद बक्ष, मुबारिक हुसैन, जाकिर हुसैन, शब्बीर हुसैन, बाबु भाई, मोहसिन हैदर, अब्दुल अजीज सिंधी, मांगु खान सहित कमेटी के मेम्बरान की दस्तारबंदी कर रस्म अदा की।
रंग, सलातो सलाम के साथ हुआ उर्स का समापन:
आखिर में महफिल पार्टियों ने मिलकर हजरत अमीर खुसरों का लिखा हुआ रंग पढा। जिसके बाद मोहम्मद सिद्दीक, हाजी चांद मोहम्मद, हाजी मुष्ताक शेख ने सलाम पढा जिनके साथ मौजूद सैंकड़ों लोगों ने सलाम पढकर साथ दिया। कुल की रस्म में कलामे पाक की तिलावत इमाम हाफिज मेहमूदजमा ने की। पीर मोहम्मद अली हाशमी साहब नागौरी ने जायरीनों की सलामती के साथ मुल्क में शांति व भाईचारे के लिए दुआएं की। उसके बाद मौजूद लोगों ने कुल के छींटे लिए और सभी ने एक दूसरे के गले मिलकर उर्स की मुबारक बाद दी। इस मौके पर महिलाएं भी मौजूद रही।
इस अवसर पर दरगाह कमेटी के सदर मोहम्मद युसुफ ने उर्स की व्यवस्था में विभिन्न विभागों से मिले सहयोग के लिए पुलिस प्रशासन, नगर निगम, विद्युत विभाग व मीडिया द्वारा दिये गये कवरेज के लिए धन्यवाद दिया।
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