29 वें राष्ट्रीय कृषि विपणन सम्मेलन का शुभारम्भ


29 वें राष्ट्रीय कृषि विपणन सम्मेलन का शुभारम्भ

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संघटक राजस्थान कृषि महाविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र एवं भारतीय कृषि विपणन समिति (हैदराबाद) के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 28-30 अक्टूबर तक आयोजित तीन दिवसीय 29 वें राष्ट्रीय कृषि विपणन सम्मेलन का शुभारम्भ बुधवार को आरसीऐ सभागार में हुआ।

 

29 वें राष्ट्रीय कृषि विपणन सम्मेलन का शुभारम्भ

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संघटक राजस्थान कृषि महाविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र एवं भारतीय कृषि विपणन समिति (हैदराबाद) के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 28-30 अक्टूबर तक आयोजित तीन दिवसीय 29 वें राष्ट्रीय कृषि विपणन सम्मेलन का शुभारम्भ बुधवार को आरसीऐ सभागार में हुआ। सम्मेलन मे देश के प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री एवं कृषि प्रबंधक, कृषि विपणन के विभिन्न पहलुओं पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत करेगें। 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, कृषि मूल्य एवं नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस. एस. आचार्य ने अपने उद्बोधन में बताया कि सरकार को समय-समय पर अपनी कृषि नीतियों में बदलाव के माध्यम से कृषि उत्पादन के बाजार को नियंत्रित करना पड़ता है जिसके लिए नियंत्रित थोक भंडारों खाद्यान्नों के आयात-निर्यातों का उचित समय पर प्रबंधन व उचित मूल्य पर विपणन की आवश्यकता होती है।

इसमें कृषि अर्थशास्त्रियों की महती भूमिका है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के तहत् विभिन्न फसलों के मूल्यों के पूर्वानुमानों की 95 प्रतिशत तक सही गणना की गयी है। उन्होंने इस परियोजना के सतत् संचालन की आवश्यकता जताई। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पी.के. दशोरा ने कहा कि आज का समय उपभोक्तावाद का है। आज उत्पादन से अधिक उसकी पैकेजिंग पर ध्यान दिया जाता है। अतः कृषि नीति निर्धारकों व शोधकर्ताओं को सामान्य कृषि उत्पादन के मूल्य संर्वधन व उचित विपणन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने सरकारी तंत्र में शामिल डाकधरों, ग्रामीण हाट बाजार, कृषि मेलों, राशन की दुकानों व बैंकों को कृषि विपणन से जोड़ने का सुझाव दिया। आपने इन सब के दौरान उपभोक्ताओं की आवश्यकता को भी ध्यान में रखने की जरुरत बताई।

कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ.एस.आर.मालू ने आगन्तुकों का स्वागत किया एवं देश मे कृषि विपणन के महत्व पर प्रकाश ड़ाला।

सामाजिक विकास परिषद् के निदेशक एवं कृषि मूल्य एवं नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. टी. हक ने कृषि मूल्य सुधारों पर विशिष्ट व्याख्यान दिया। उन्होने बताया कि किस प्रकार 1965 में विभिन्न फसलों के समर्थन मूल्य निर्धारण करने की नीति भारत सरकार ने प्रारम्भ की थी।

उन्होंने कृषि मूल्यों पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों व चुनौतियों की चर्चा करते हुए इसमें विभिन्न सुधारों की ओर सदन का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने बताया कि उचित प्रबंधन, लागत मूल्यों में कमी संसाधनों के समुचित उपयोग व किसानों तक समयोचित जानकारी के प्रसार द्वारा किसानों के हितों की रक्षा एवं उनके उत्पादन का उचित मूल्य दिलाया जा सकता है।

भारतीय कृषि विपणन समिति के संस्थापक सचिव डॉ. टी. सत्यनारायण ने बताया कि समिति विगत 28 वर्ष से कृषि विपणन के क्षंत्र मे सतत् कार्य कर रही है। उन्होने बताया कि सम्मेलन के दौरान मुख्य रूप से तीन विषयों पर गहन चर्चा होगी। प्रथम विषय वस्तु में कृषि उत्पादों एवं प्रमुख फसलों यथा दलहन, तिलहन, बीजीय फसलें तथा रेशे एवं उद्यानिकी फसलों पर चर्चा की जायेगी।

द्वितीय विषय वस्तु में मत्स्य उत्पादों एवं मत्स्य विपणन की नीतियों पर चर्चा एवं तृतीय विषय वस्तु के रूप में राजस्थान में कृषि विपणन तथा विपणन के नवाचारों की समीक्षा एवं विस्तृत चर्चा की जायेगी। सम्मेलन के दौरान कृषि विपणन से सम्बन्धित अनुशंषाओं की प्रस्तावना राजस्थान एवं केन्द्र सरकार को की जायेगी।

सम्मेलन के आयोजन सचिव कृषि अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष, डॉ. एस.एस.बुरडक ने बताया कि सम्मेलन में देश के 80 से अधिक जाने माने कृषि अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक एवं शोधार्थी भाग ले रहे हैं। सम्मेलन में विभिन्न तकनीकि सत्र समानान्तर रूप से प्रसार शिक्षा निदेशालय कृषि सूचना केंन्द्र तथा अनुसंधान केंन्द्र के विभिन्न सभागारों में आयोजित किए जाऐंगे। दिनांक 29 अक्टूबर को डॉ.एस.एस. आचार्य का कृषि विपणन सुधारों के द्वितीय चरण पर एवं जे एन यू के अर्थशास्त्र अध्ययन एवं योजना केन्द्र की एमेरीटस प्रोफसर डा.शीला भल्ला का खाद्य सुरक्षा व जन नीतियों पर केंन्द्रित विशिष्ट व्याख्यान आयोजित किए जाएगे। संगोष्ठी का समापन दिनांक 30 अक्टूबर को होगा।

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