इन्टरनेट एडिक्शन


इन्टरनेट एडिक्शन

युवाओं के लिए इन्टरनेट से जीवन बहुत सहज हो गया हैं। लेकिन कहीं न कहीं सहज जीवन जीने की इस आदत ने लत का रूप ले लिया हैं। आजकल लोग हर छोटे काम से लेकर बड़े काम तक पूरी तरह इन्टरनेट पर निर्भर हो चुके हैं।

 
इन्टरनेट एडिक्शन

युवाओं के लिए इन्टरनेट से जीवन बहुत सहज हो गया हैं। लेकिन कहीं न कहीं सहज जीवन जीने की इस आदत ने लत का रूप ले लिया हैं। आजकल लोग हर छोटे काम से लेकर बड़े काम तक पूरी तरह इन्टरनेट पर निर्भर हो चुके हैं। 

युवा पीढ़ी हर समय इन्टरनेट पर सोशल साईट्स का इस्तेमाल करने में लगी हैं । कुछ समय के बजाय हद से ज्यादा सोशल साईट्स का इस्तेमाल करना या उस पर निर्भर रहना यह एक गम्भीर चिन्ता का विषय हैं।

इन्टरनेट की इस सुविधा से जहां पुराने मित्र सम्पर्क में रहते हैं या नये मित्रों में इजाफा होने लगता हैं वहीं इसका दूसरा पहलू यह है कि हम इसकी आदत से अपने करीबी मित्रों व परिवारों, रिश्तेदारों से भी कटने लगते हैं। या फिर ऐसी स्थिति होती हैं कि मेजबान मेहमाननवाजी में लगे होते हैं और मेहमान मोबाईल से अड़े रहते हैं।

यदि व्यक्ति असल जिंदगी में ज्यादा सोषल रहता हैं या लोगों के सम्पर्क में रहता है तो उसे इतनी सोशल इंटरेक्शन की जरूरत नहीं पड़ती हैं। इन्टरनेट के इस बढ़ते उपयोग से माता-पिता की सोच तक को बदल कर रख दिया।

जहां पहले जन्म के कुछ समय पश्चात बच्चों को हाथ में खिलौने खेलने को दिए जाते थे वहीं आज बच्चों को मोबाईल थमा दिया जाता हैं। टेक्नोलॉजी अच्छी हैं लेकिन यह समझना बेहद जरूरी है कि इसका इस्तेमाल कब, कैसे और कितना किया जाए। क्योंकि कहीं न कही इन्टरनेट की इस टेक्नोलॉजी से इन्टरनेट और ऑफलाईन जीवन में संतुलन बिगड़ा हैं।

जहां पहले युवा पीढ़ी शारीरिक कसरत के लिए आउटडोर गेम्स खेला करती थी वहीं अब दिन भर कम्प्यूटर या मोबाईल्स पर गेम्स खेला करती हैं। इससे व्यक्ति में अकेले रहने की आदत बढ़ी हैं। जहां पहले व्यक्ति दो कदम चलकर भी बिजली और पानी के बिल भरा करता था वहीं अब यह काम घर बैठे इन्टरनेट के माध्यम से होने लग गये। जिससे व्यक्ति का घर से बाहर निकलना कम होता चला गया।

पहले लोग त्यौहार या किसी विशेष अवसर पर घर जाकर बधाईयाँ देते वहीं अब इसके विपरीत एक स्टेटस फेसबुक पर अपलोड कर देने से सभी को बधाईयाँ मिल जाती हैं। चाहे कितने ही करीबी हमारे पास ही क्यों न रहते हो; हम उनसे मिलने का कष्ट तक नहीं करते। इससे व्यक्ति के दिनों दिन अकेलेपन में काफी हद तक इजाफा हुआ हैं। और अब स्थिति यह है कि जहां पहले लोग समाज में मिलकर बातचीत करके एक दूसरे के व्यवहार का आकलन करते थे अब ठीक इसके विपरीत व्यक्ति अपने स्वयं का आकलन फेसबुक पर मिलने वाले लाइक्स व कमेन्ट्स के आधार पर करता हैं।

एक तरफ जहां इन्टरनेट के उपयोग से हम यह जान पाते हैं कि देश और दुनिया किस दिशा में जा रही हैं तो दूसरी ओर इसके अधिकाधिक इस्तेमाल से हम स्वयं अपने जीवन जीने की दिशा बदल देते। यदि कुछ समय के लिए भी किसी का इन्टरनेट कनेक्शन बंद हो जाए तो बेचैनी होने लगती है। परिणाम स्वरूप इस टेक्नोलॉजी के अधिकाधिक उपयोग ने बिमारी का रूप धारण कर लिया हैं। जिसे इन्टरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर कहते हैं।

लेाग इंटरनेट पर सोशल साइट्स द्वारा अपनी प्राइवेसी तक खत्म करने में लगे हैं। अब युवा पीढी अपने काम से कुछ समय के लिये भी ब्रेक लेके कहीं घुमने फिरने जाती है तो भी उनका ध्यान उस जगह या जिनके साथ हम समय व्यतीत कर रहे हैं वहां न रहकर हम किस स्थान पर और किसके साथ है यह स्टेटस अपलोड करने में लगा रहता है। इस तरह यह तकनीक कहीं न कहीं तकलीेफ का रूप ले रही है। किसी भी चीज का अधिक उपयोग दवा की जगह नशे का रूप ले लेता हैै। इसी तरह इंटरनेट ने भी युवा पीढी के जीवन में दवा की जगह नशे का रूप ले लिया है।

नुपुर जारोली

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