क्या बस यूँ ही?
आज के समय में जब हमारी ज़िन्दगी तथाकथित प्रगति के पथ पर बढ़ रहे हैं, और वो भी किसानों के दुखों और मुसीबतों को दरकिनार करते हुए, ऐसे में 'रूरल राजस्थान' में काम कर रहे हिमालय तहसीन ने निम्नलिखित दो कवितायेँ लिखीं हैं। यह कविताएँ हाल ही में हुई बेमौसम बरसात एंव ओलावृष्टि के उपरांत लिखी गई हैं।
आज के समय में जब हम तथाकथित प्रगति के पथ पर बढ़ रहे हैं, और वो भी किसानों के दुखों और मुसीबतों को दरकिनार करते हुए, ऐसे में ‘रूरल राजस्थान’ में काम कर रहे हिमालय तहसीन ने निम्नलिखित दो कवितायेँ लिखीं हैं। यह कविताएँ हाल ही में हुई बेमौसम बरसात एंव ओलावृष्टि के उपरांत लिखी गई हैं।
चढ़ा
पड़ा ओला
टूटा खपरैल
फूल मजोरिटी की सरकार
माह अप्रैल!
बीमा, बीमा, बीमा है
बीमा बोला बम बोला
भोले नाथ के सुवर्ण कपाट
पक्ष-विपक्ष का हिण्डोला!
बीज बढ़त
पौध बढ़त
पड़त धरती
खेत अढ़त
माँ के गले का काला धागा
बाप हमारा पेड़ चढ़त!
लटक गया
लटक गया
सबने देखा
पेड़ पर
नहीं देखा
लटक रहा था
ज़मीन के ऊपर
जिसे छीन कर
बांध देना चाहती है सरकार
मोटे सेठ के
पेट पर!
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal