सुशासन के लिए स्‍थानीय निकायों को सक्षम बनाना जरूरी : प्रो. शर्मा


सुशासन के लिए स्‍थानीय निकायों को सक्षम बनाना जरूरी : प्रो. शर्मा

वर्तमान परिस्थिति में स्‍थानीय निकाय सरकार की तरह पूर्णतया कार्य करने को सक्षम नहीं है और न ही वे सुशासन के लिए स्‍थानीय परिवेश के मुताबिक निर्णय करने में सक्षम है, इन्‍हें राज्‍य के शासन के अन्‍तर्गत ही कार्य करना पडता है जो कि स्‍थानीय सुशासन की दृष्टि से उचित नहीं है। ये विचार राजस्‍थान […]

 

सुशासन के लिए स्‍थानीय निकायों को सक्षम  बनाना जरूरी : प्रो. शर्मा

वर्तमान परिस्थिति में स्‍थानीय निकाय सरकार की तरह पूर्णतया कार्य करने को सक्षम नहीं है और न ही वे सुशासन के लिए स्‍थानीय परिवेश के मुताबिक निर्णय करने में सक्षम है, इन्‍हें राज्‍य के शासन के अन्‍तर्गत ही कार्य करना पडता है जो कि स्‍थानीय सुशासन की दृष्टि से उचित नहीं है।

ये विचार राजस्‍थान संघ लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्‍यक्ष प्रो. बृज मोहन शर्मा ने आज यहां विद्याभवन रूरल इंस्‍टीट्यूट के सभागार में संस्‍थान के राजनीति विज्ञान विभाग और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित ‘तृणमूल स्‍तर पर विकास : मुद्दे और चुनौतियां’ विषय‍क दो दिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के उद्घाटन अवसर पर मुख्‍य वक्‍ता के रूप में व्‍यक्‍त किया।

उन्‍होंने कहा कि जिस प्रकार केन्‍द्र और राज्‍यों में राष्‍ट्रीय और प्रदेश स्‍तरीय निर्णय लेने में जो स्‍वायत्‍ता प्राप्‍त है उसी प्रकार स्‍थानीय निकायों को भी उतनी ही स्‍वायतत्‍ता मिलनी चाहिए ताकि तृणमूल स्‍तर पर विकास किया जा सके। उन्‍होंने कहा कि इस व्‍यवस्‍था से मतभिन्‍नता रखने वालों का यह तर्क सही हो सकता है कि स्‍थानीय स्‍तर पर भ्रष्‍टाचार होगा लेकिन यह स्‍थायी समस्‍या नहीं है। इस समस्‍या के निराकरण के लिए अनेक विकल्‍प मौजूद हैं। प्रो. शर्मा ने कहा कि जिलास्‍तरीय योजना समितियों में भी तकनीकी तौर पर कुशल पेशेवरों को शामिल करना चाहिए ताकि वे स्‍थानीय आवश्‍यकताओं और सुशासन में मददगार हो सकें।

इस अवसर पर महर्षि दयानन्‍द सरस्‍वती विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी ने कहा कि गणतंत्र में सिर्फ गण का ही अच्‍छा होना पर्याप्‍त नहीं है अपितु तंत्र भी उतना ही प्रभावी और उपयोगी होना चाहिए। उन्‍होंने राजनीति और तंत्र में तारतम्‍य बिठाने की आवश्‍यकता पर बल दिया।

कार्यक्रम के विशिष्‍ट अतिथि प्रो. संजय लोढा ने कहा कि शिक्षा और राजनीतिक सहभागिता में सहसंबंध स्‍थापित करने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने तृणमूल शासन में कई समसामयिक नवाचारों पर भी मंथन की आवश्‍यकता बताई। प्रो. अरूण चतुर्वेदी ने विकास के लाभों को समतापूर्वक वितरण पर बल दिया तथा कहा कि विकास के विकल्‍प को स्‍थापित करने की महती जरूरत है।

कार्यक्रम के अध्‍यक्षीय उद्बोधन में रियाज तहसीन ने स्‍थानीय स्‍तर पर उत्‍तरदायी और जिम्‍मेदार नागरिक के निर्माण में विद्याभवन के प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि आधारभूत तरीके से विकास की योजनाएं निर्मित की जाएं अन्‍यथा विकास की सोच धराशाही रह जाएगी।

इससे पूर्व सेमीनार के समन्‍वयक डा. मनोज राजगुरू ने सेमीनार का विषय परिचय प्रस्‍तुत किया । विभिन्‍न तकनीकी सत्रों में लोकतांत्रिक विकेन्‍द्रीकरण की संरचना, वंचित वर्ग, उभरता नेतृत्‍व जैसे विषयों पर विभिन्‍न राज्‍यों से आए विद्वानों ने अपने शोध पत्र प्रस्‍तुत किए । संस्‍थान के निदेशक डा. टी. पी. शर्मा ने अतिथियों का स्‍वागत किया और आभार डा. शैल सिंह सोलंकी ने किया।

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