दूध को माँसाहार बताने वाले शख्स जेम्स एस्पे उदयपुर में
जानवरों के अधिकारों के लिए आंदोलनरत विश्व विख्यात आस्ट्रेलियाई श्री जेम्स एस्पे उदयपुर के महाविद्यालय परिसरों में विद्यार्थियों से रूबरू हुए। विश्व भर में निरवद्यता (विगनिज्म) के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाए जेम्स एस्पे का अरावली इंस्टिट्यूट एवं टेक्नो इंडिया एन.जे.आर. इंस्टिट्यूट के विद्यार्थियों ने पूरे उत्साह से स्वागत किया।
जानवरों के अधिकारों के लिए आंदोलनरत विश्व विख्यात आस्ट्रेलियाई श्री जेम्स एस्पे उदयपुर के महाविद्यालय परिसरों में विद्यार्थियों से रूबरू हुए। विश्व भर में निरवद्यता (विगनिज्म) के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाए जेम्स एस्पे का अरावली इंस्टिट्यूट एवं टेक्नो इंडिया एन.जे.आर. इंस्टिट्यूट के विद्यार्थियों ने पूरे उत्साह से स्वागत किया।
दोनों महाविद्यालयों में जेम्स एस्पे ने चार सौ से अधिक इंजीनियरिंग छात्र-छात्राओं से खचाखच भरे ऑडिटोरियम को अपने भावुक एवं गंभीर संबोधन से डेढ़ घंटे तक बांधें रखा। पशुओं की बड़ी पैमाने पर हो रही खेती एवं पशु उत्पादों के बढ़ते उपभोग से परिपूर्ण हमारी आज की जीवन-शैली से पशुओं के शोषण और क़त्ल से त्रस्त असंख्यात पशुओं की पीड़ा को उन्होंने अपनी आवाज देकर प्रकट किया। इनके लिए उत्तरदायी कारणों पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि हम पशुओं से निर्मित व्यंजनों को केवल अपने स्वाद, परम्परा, आदतों अथवा सुविधा की वजह से उपभोग करते हैं। जबकि हम पशु-मुक्त आहार एवं उत्पाद का चयन भी कर सकते हैं। यह हमारे लिए मात्र अपनी पसंद का चुनाव हो सकता है, परन्तु वह चुनाव एक जानवर के लिए उसकी जिन्दगी और मौत का अंतर होता है। हर जानवर जीना चाहता है और उसके जीवन के अधिकार का हनन करने का मानव को कोई हक़ नहीं है। यह पृथ्वी सभी की है और सभी प्राणियों का इस पर सामान अधिकार है।
शाकाहार में दूध, घी, पनीर और मक्खन जैसे पशु उत्पादों को सम्मिलित करने पर उन्होंने विशेष प्रहार किया। उन्होंने दूध को मांस से भी क्रूर बताते हुए कहा कि गाय के प्रसव के बिना हमें दूध नहीं मिलता है। अत: गाय का बार-बार जबरन कृत्रिम गर्भाधान कराया जाता है। उसके नर-बछडा होने पर तुरंत क़त्लखाने भेजा जाता है, क्योंकि हमे उससे कभी दूध प्राप्त नहीं हो सकता है। मादा-बछड़े को भी पैदा होते ही अपनी माँ से अलग कर दिया जाता है ताकि वह अपनी माँ का दूध न पी सके। इस प्रकार हम उसकी माँ का दूध चुरा कर पीतें हैं। एक गाय के बार-बार चक्रवत गर्भाधान, प्रसव और मशीनों से दूध निकालने की अप्राकृतिक प्रक्रिया से 5-7 वर्ष में गाय का शरीर टूट जाता है। फिर उसका और प्रसव नहीं हो पाता। अतः उसे पांच वर्ष की बाल्यावस्था में ही कत्लखाने भेज दिया जाता है। भारत में व्यक्तिगत स्तर पर गौ-पालन को लेकर श्री जेम्स ने टिप्पणी की कि वे गौ-पालन के नाम पर गाय को आजीवन के लिये बंधी बना देतें हैं और जिन दिनों वह दूध नहीं देती है, उसे सड़कों पर प्लास्टिक खाने के लिए छोड़ देतें हैं।
हमारे गाय का दूध पीने को निहायत ही अनावश्यक बताते हुए जेम्स ने बताया कि प्रकृति ने प्रत्येक प्रजाति का दूध उसी प्रजाति के प्राणी के लिए विशेष रूप से डिजाईन किया गया है। तीस-चालीस किलोग्राम का एक छोटा-सा बछडा अपनी माँ का दूध पी कर जल्दी ही चार-पांच सौ किलोग्राम का विशालकाय जीव बन जाता है। हमारे शारीर के विकास के लिए यह बहुत नुकसानदायक है। लोगों में भ्रान्ति है कि दूध से हमें कैल्सियम प्राप्त होता है। परन्तु तथ्य यह है कि इससे उलट हमारी हड्डियों से कैल्सियम बाहर निकल जाता है। अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों और शोध पत्रों का संदर्भ लेकर उन्होंने इसकी पूरी प्रक्रिया को वैज्ञानिक रुप से समझाया। उन्होंने बताया कि विश्व में जिन-जिन देशो में दूध का अधिक उपभोग होता है, वहाँ कमजोर हड्डियों का ओस्टियोपोरोसिस नामक रोग भी अधिक पाया जाता है।
निरवद्य जीवन-शैली को अपनाने का अर्थ समझाते हुए उन्होंने छात्र-छात्राओं को सभी प्रकार के पशु-उत्पादों के उपभोग और इस्तेमाल से दूर हो, पशुओं के प्रति हो रही क्रूरता व हिंसा में अपना योगदान बिलकुल नहीं करने की अपील की। पशुओं के इस्तेमाल से होने वाले मनोरंजन, भारवाहक पशुओं के रुप में उन से गुलामी करवाना, शोध एवं प्रयोग हेतु पशुओं का इस्तेमाल कर तैयार पशु-उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान किया। उन्होंने निरवद्य जीवन-शैली को बहुत आसान बताते हुए कहा कि आपको अपने हर चुनाव एवं पसंद के समय मुस्तैद रहना होगा। आप घी–पनीर से बनी सब्जियों की जगह आसानी से आलू-गोभी या चना-मसाला खा सकते हैं। रेशम से बने वस्त्रों की जगह सूती वस्त्र खरीद सकते हैं, ऊन या फर से बने कपडों की जगह सिंथेटिक वस्त्रों को पहन सकते है। भारत में निरवद्य आहार के लिए कई बेहतरीन और स्वादिष्ट विकल्प उपलब्ध होने की उन्होंने भूरी-भूरी प्रशंसा की और इस वजह से भारत में अपने सफ़र को मजेदार एवं सुगम बताया। डेयरी के विकल्पों की बात करते हुए उन्होंने सोयाबीन के दूध, टोफू (पनीर), नारियल, बादाम, मूंगफली आदि से बने दूध का सेवन करने का सुझाव दिया।
सवाल-जवाब सत्र में छात्र-छात्राओं ने श्री जेम्स एस्पे से बड़े ही रोचक प्रश्न किये जैसे कि वनस्पति की हत्या कर उसे खाना कैसे न्यायोचित है?, दुनिया में सभी लोग निरवद्य हो जायेंगे तो क्या खाद्यान्न की कमी नहीं हो जाएगी? ऊन के इस्तेमाल में क्या क्रूरता है? आदि। ऐसे सभी प्रश्नों के जेम्स एस्पे ने बहुत ही तर्क-संगत जवाब दिये व सभी श्रोताओं को पूर्णतः संतुष्ट कर ही वहाँ से गये।
जवाब में छात्र-छात्राओं ने भी बड़े ही उत्साह से स्वतः ही उन्हें निरवद्यता को अपनाने का आशवासन दिया। अरावली इंस्टिट्यूट के निदेशक श्री हेमंत धाबाई ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि आज सभी छात्र-छात्राओं को ऐसी सोच-समझ और जागरूकता की बहुत आवश्कता है। टेक्नो इंडिया एन.जे.आर. कॉलेज के निदेशक श्री पंकज पोरवाल ने पूरे कार्यक्रम में अपने सक्रिय भागिदारी कर, जेम्स एस्पे के उद्बोधन हेतु धन्यवाद दिया। श्री जेम्स एस्पे जो वर्ष 2014 में मूक पशुओं के खातिर पूरे 365 दिन मौन रहे थे, के आहवान पर पूरी दुनिया के पशु प्रेमी 17 जनवरी 2016 को मूक दिवस के रूप में मना रहे है। उदयपुर में भी इसका आयोजन सेलिब्रेशन मॉल में आगामी रविवार को किया जायेगा। श्री जेम्स कल शाम की फ्लाइट से गोवा के लिए रवाना होगे। वे गोवा और मुंबई में भी इस हेतु अपनी वार्ता देंगें।
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