झामरकोटडा क्षेत्र में संरक्षित है 180 करोड वर्ष पुराने जीवाश्म
मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के तत्वावधान में चल रही तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के आज दूसरे दिन भूवैज्ञानिकों के दल ने झामरकोटडा क्षेत्र में मौजूद 180 करोड वर्ष पुराने शैवाल जिवाश्मों का अवलोकन किया।
मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के तत्वावधान में चल रही तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के आज दूसरे दिन भूवैज्ञानिकों के दल ने झामरकोटडा क्षेत्र में मौजूद 180 करोड वर्ष पुराने शैवाल जिवाश्मों का अवलोकन किया।
विषेशज्ञों के अनुसार इस क्षेत्र में 180 करोड वर्ष पहले उथला समुद्र था जिसमें हरित शैवाल की कॉलोनियां थी। इसी शैवाल ने समुद्र जल से फास्फोरस को अवशोधित किया जिससे झामरकोटडा क्षेत्र में रॉक फास्फेट के भण्डार मिलते हैं। यहाँ हरित शैवाल के जिवाश्म विशेष प्रकार की सरंचनाओं में मिलते हैं जिन्हे स्ट्रोमेटोलाइट कहा जाता है।
इससे पूर्व भूवैज्ञानिकों के दल ने जगत मार्ग पर मामादेव गांव के पास 330 करोड वर्ष पुरानी चट्टानों की उत्पति पर चर्चा की।
चर्चा में पाया गया कि यह चट्टाने प्रारम्भ में क्षारीय किस्म की ज्वालामुखी चट्टाने थी जिनका अति उच्च स्तरीय कायान्तरण हो जाने से नई किस्म की कायान्तरित चट्टानें बन गई।
इसके बाद दल ने रेलपातलिया गांव के पास स्थित बेराईट खनिज की खदान पर भ्रमण किया। यहाँ बराईट खनिज की उत्पति एवं वितरण पर विचार-विमर्ष हुआ।
चर्चा में पाया गया कि यहाँ बेराईट खनिज मूलतः छोटी-छोटी शिराओं के रूप में मिलता है तथा लगभग 200 करोड वर्ष पूर्व अति-तापीय खनिजयुक्त भूमिगत द्रव ने इस खनिज का भण्डारण किया।
भूवैज्ञानिकों के दल में प्रो. विनोद अग्रवाल, प्रो. एन.के. चौहान, प्रो. के.सी. तिवारी, प्रो. ए.वी.जोशी, प्रो. हर्ष भू, डॉ. एच.एस. यादव, डॉ. मनोज पारीक, डॉ. जोनाली मेधी, डॉ. अरून्धति चक्रवर्ति, डॉ. पी.जे. रत्नाकर, डॉ. डी.सी. मेषराम आदि उपस्थित थे।
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