‘‘शाकुन्तलम्’’ में जीवन्त हुए कालिदास


‘‘शाकुन्तलम्’’ में जीवन्त हुए कालिदास

श्री पनिक्कर ने इस संस्कृत नाटक को एक अनूठे अंदाज में पेश किया जिसमें संवादों की स्पष्टता और दृश्य बिम्बों का ताना-बाना उत्कृष्ट ढंग से बुना गया। कलाकारों ने अपने जीवन्त अभिनय से नाट्य प्रस्तुति को प्रभावी और दर्शनीय बनाया। दुष्यन्त की भूमिका में गिरीश वी. तथा शकुंतला के रूप में मोहिनी विनायन का अभिनय तथा आभिनयिक सामंजस्य अनुपम बन सका। क्रोधी स्वभाव के ऋषि दुर्वासा के किरदार में कोमलन नायर जी का अभिनय दर्शकों द्वारा पसंद किया गया। नाटक के अन्य पात्रों में विदूषक-एस.एल. साजीकुमार, सारंगर्व- शेरोन वी.एस., शरदवथा- श्रीकांत शंकर एस.यू., गौतमी-विनीता के. थंबन, प्रियंवदा-कीर्तना रवि, अनसूया-कृष्णा एम.एस., कनवण-शिव कुमार के., कुम्भीलका व सूता के किरदार में मणिकांतन पी., सूचका व दीरखपंकन- रघुनाथन सी. तथा हरिनाम के रूप में प्रवीण का अभिनय सराहनीय रहा। नाटक में वेश विन्यास, प्रकाश व्यवस्था तथा मंच सज्जा मुरली चन्द्रन की थी।

 

‘‘शाकुन्तलम्’’ में जीवन्त हुए कालिदास

यहां शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में आयोजित ‘‘शास्त्रीय नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन संस्कृत नाटक ‘‘शाकुंतलम्’’ में एसा लगा मानों महाकवि कालिदास जीवन्त हो उठे। सधे अभिनय और मनोहारी दृश्यों के गठन ने प्रस्तुति में दर्शक सम्मोहित सा हो गया। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित चार दिवसीय ‘‘शास्त्रीय नाट्य महोत्सव’’ के दूसरे दिन केरल की संस्था सोपानम् के कलाकारों द्वारा महाकवि कालिदास की शकुंतला को देश के सुविख्यात नाटककार व पद्मभूषण श्री कवलम् नारायण पनिक्कर की निगाह से देखने और समझने का अवसर मिला। नाटक दुष्यन्त और शकुंतला के विवाह के उपरान्त दुष्यंत को अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के लिये हस्तिनापुर जाना पड़ता है। दुष्यंत शकुंतला को एक अंगूठी देते हैं कि वो राजा को उसे दिखा कर उसके पास आ सके और रानी के रूप में अपना हक जता सके।

‘‘शाकुन्तलम्’’ में जीवन्त हुए कालिदास दुष्यंत के जाने के पश्चात शकुंतला अपनी सुधबुध खो बैठती तथा गुस्सैल ऋषि दुर्वासा की आवभगत नहीं कर सकी। इससे क्रोधित हो ऋषि उसे श्राप देते है कि तू जिसे याद कर रही है वो तुम्हें भूल जाये। वो केवल अंगूठी दिखाने पर इससे मुक्त होगी। इससे शकुंतला दुष्यंत से मिलना विवाह, बिछड़ना व पुनः मिलना आदि प्रसंग प्रस्तुति के अंग रहे।

‘‘शाकुन्तलम्’’ में जीवन्त हुए कालिदास

श्री पनिक्कर ने इस संस्कृत नाटक को एक अनूठे अंदाज में पेश किया जिसमें संवादों की स्पष्टता और दृश्य बिम्बों का ताना-बाना उत्कृष्ट ढंग से बुना गया। कलाकारों ने अपने जीवन्त अभिनय से नाट्य प्रस्तुति को प्रभावी और दर्शनीय बनाया। दुष्यन्त की भूमिका में गिरीश वी. तथा शकुंतला के रूप में मोहिनी विनायन का अभिनय तथा आभिनयिक सामंजस्य अनुपम बन सका। क्रोधी स्वभाव के ऋषि दुर्वासा के किरदार में कोमलन नायर जी का अभिनय दर्शकों द्वारा पसंद किया गया। नाटक के अन्य पात्रों में विदूषक-एस.एल. साजीकुमार, सारंगर्व- शेरोन वी.एस., शरदवथा- श्रीकांत शंकर एस.यू., गौतमी-विनीता के. थंबन, प्रियंवदा-कीर्तना रवि, अनसूया-कृष्णा एम.एस., कनवण-शिव कुमार के., कुम्भीलका व सूता के किरदार में मणिकांतन पी., सूचका व दीरखपंकन- रघुनाथन सी. तथा हरिनाम के रूप में प्रवीण का अभिनय सराहनीय रहा। नाटक में वेश विन्यास, प्रकाश व्यवस्था तथा मंच सज्जा मुरली चन्द्रन की थी।

‘‘शाकुन्तलम्’’ में जीवन्त हुए कालिदास

चार दिवसीय नाट्य महोत्सव के तीसरे दिन बुधवार शाम सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ द्वारा निर्देशित हिन्दी नाटक ‘‘भगवद्ज्जूकेयम’’ का मंचन किया जायेगा।

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