कल्याण आश्रम का प्रतिनिधि मण्डल केन्द्रीय मंत्रियों से मिला


कल्याण आश्रम का प्रतिनिधि मण्डल केन्द्रीय मंत्रियों से मिला

भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव में और खनन विधेयक 2011 में जनजाति हितों की अनदेखी नहीं करने और अल्पसंख्यकों को देय सुविधाओं में दोहरा लाभ रोकने की मांग को लेकर वनवासी कल्याण आश्रम का प्रतिनिधि मण्डल केन्द्रीय मंत्रियों से मिला।

 

भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव में और खनन विधेयक 2011 में जनजाति हितों की अनदेखी नहीं करने और अल्पसंख्यकों को देय सुविधाओं में दोहरा लाभ रोकने की मांग को लेकर वनवासी कल्याण आश्रम का प्रतिनिधि मण्डल केन्द्रीय मंत्रियों से मिला।

कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदेवराम उरांव के नेतृत्व में मिले इस प्रतिनिधि मण्डल में अरूणाचल, मणिपुर, झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली एवं राजस्थान के प्रमुख लोग सम्मिलित थे। प्रतिनिधि मण्डल ने इन सभी केन्द्रीय मंत्रियों के समक्ष भूमि अधिग्रहण कानून में प्रस्तावित संशोधन में जनजाति हितों की अनदेखी करने के समाचारों पर चिंता एवं विरोध प्रकट करते हुए कहा कि औद्योगिक विकास के बहाने जनजाति हितों की उपेक्षा करना दीर्घकालिन विकास में बाधक होगा।

उन्होंने बताया कि पुनर्वास के प्रावधानों में बदलाव, सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन के प्रावधानों को ढीला करना, अनुसूचित जातियों-जनजातियों को जमीन के बदले जमीन प्रावधानों को समाप्त करना, और इस कानून के पूर्ववर्ती प्रभाव से लागू होने के प्रावधानों को समाप्त करने जैसे अनेकों प्रावधानों पर चिंता एवं विरोध प्रकट किया गया।

संयुक्त महामंत्री विष्णुकांत ने बताया कि इसी प्रकार केन्द्रीय सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में पेश करने जा रही खनन विधेयक 2011 विधेयक में जनजातियों-अन्य प्रभावित विस्थापित लोगों को लाभों में हिस्सा देने और खनन कार्य पूरा होने के बाद जमीन को खेती के लायक बनाकर लौटाने के प्रावधानों को सम्मिलित किये जाने की मांग की। ज्ञात रहे कि पिछली यूपीए सरकार ने पहले शुद्ध लाभ का 26 प्रतिशत और बाद में राज्यों को देय रायल्टी के बराबर की राशि का हिस्सा लाभ के रूप में जनजातियों-अन्य विस्थापित/प्रभावित लोगों में बांटने का नीतिगत निर्णय लिया था।

2007 से ही यह विधेयक और हमारी यह मांग लम्बित है। लाभों में हिस्सेदारी के बारे में राष्ट्रीय खनन नीति 2008, उच्चतम न्यायालय के समता बनाम आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध वाद में दिये गये निर्देश और विश्व भर में ऐसे प्रभावित-विस्थापित लोगों को 20 से 30 प्रतिशत तक दिया जा रहा लाभों में हिस्सा इस निर्णय-मांग का आधार है।

माओवादी हिंसा से प्रभावित जनजाति क्षेत्र में अंधाधुंध खनन-भूमि अधिग्रहण और सम्पन्नता-उत्पादन के असमान वितरण के कारण हो रहे असंतोष को दूर करने और विकास के लिये अनुकूल वातावरण बनाने के लिये भी ऐसा करना आवश्यक है।

केन्द्र सरकार की अल्पसंख्यकों के आर्थिक-शैक्षिक विकास और ऐसे वर्ग की बहुलता वाले क्षेत्र में ढांचागत विकास कार्यक्रमों को तर्कसंगत बनाने की मांग की गई ताकि कोई भी व्यक्ति और समुदाय अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक इन चारो में से किसी एक का ही लाभ उठा सके। अभी सरकार की गलत नीतियों के कारण कुछ लोग और समुदाय एक साथ दो-दो वर्गों का लाभ उठा रहे हैं जो अनैतिक, अनुचित और कानूनी रूप से अवैध है।

प्रतिनिधि मण्डल ने जनजाति मंत्री जुएल उरांव, ग्रामीण विकास मंत्री नीतिन गडकरी, गृहमंत्री राजनाथसिंह, अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री श्रीमति नजमा हेपतुल्ला, खान राज्य मंत्री नरेन्द्रसिंह तोमर, विष्णुदेव साय, सुदर्शन भगत और मनसुख भाई वसावा से मिल कर अपनी मांगो को प्रमुखता से रखा।

इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित भाई शाह को भी वनवासियेां की चिंताओं से अवगत कराया गया। इन सभी नेताओं ने प्रतिनिधि मण्डल की बातों को गंभीरतापूर्वक सुना और समुचित कार्यवाही का विश्वास दिलाया।

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