'करूणा' मानव को प्राणी मात्र से जोड़ देती है


'करूणा' मानव को प्राणी मात्र से जोड़ देती है

श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि करुणा मानव मन की कोमलतम संवेदना का एक अद्भुत अनुभव है। किसी पीडि़त की आह अपने अंतर को हिलाकर रख दे, यह करुणा की कार्यकारिता है। धन्य हैं वे मन जिसमें करुणा जैसे कोमल भाव का उदय होता है और आगे बढ़ता है।

 

श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि करुणा मानव मन की कोमलतम संवेदना का एक अद्भुत अनुभव है। किसी पीडि़त की आह अपने अंतर को हिलाकर रख दे, यह करुणा की कार्यकारिता है। धन्य हैं वे मन जिसमें करुणा जैसे कोमल भाव का उदय होता है और आगे बढ़ता है।

वे पंचायती नोहरे में गुरुवार को आयोजित धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में हृदय को कमल की उपमा दी गई है। कमल तो कोमल होता है, किन्तु देखा जाता है कि व्यक्ति अपने हृदय में कमल नहीं पत्थर लिये फिर रहा है। सरकारी सामाजिक और व्यवहारिक व्यवस्थाए कुछ ऐसी हो गई कि मानव मन की करुणा की धारा सूखती जा रही है।

मुनि श्री ने कहा कि आज मानव कुछ ऐसा कठोर और निर्दयी बनता जा रहा है कि जिन माता – पिता का असीम सहकार मिला जिन से जीवन मिला उनके प्रति भी वह संवेदन हीन बन चृका है।

उपभोक्तावाद ने भी मानव के सोचने कि दिशा बदल दी है। अति स्वार्थ वृति ने व्यक्ति के विचारो को स्वयं तक सीमित कर दिया है। हम कहते यह हैं कि दया धर्म का मूल है किन्तु इस मूल मार्ग से आज भटक सा गया है। घायल व्यक्ति सडक़ पर तड़प रहा है, अनेक व्यक्ति आस पास खड़़े है। किन्तु कितने मांॅ के लाल ऐसे वहा दौड़ेगे कि उसको हॉस्पीटल पहुचाए। अक्सर यह देखा गया कि व्यक्ति तमाशबीन की तरह देखा करता है। और उसके सामने ही घायल मानव दम तोड़ देता है।

यह मानवता के मांथे पर कंलक जैसा है। परस्पर एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना यह भी अहिंसा की आराधना का रचनात्मक स्वरूप है। मुनिश्री ने बताया कि प्रत्यक्ष हिंसा से तों हम बचने का प्रयास करते है किन्तु परोक्ष हिंसा को भी हमें समझना चाहिये। चमड़े के चमकदार पर्स – सूज आदि आकर्षक पदार्थ उपयोग में लेना पंचेन्द्रिय प्राणियो कि हिंसा से ही तैयार होते है। उनका उपयोग करना हिंसा के भागीदार और परोक्ष प्रेरणा देने जैसा है। मुनिश्री ने कहा कि बड़े बड़े भोजन में अन्न का दुरूपयोग यह भी परोक्ष हिंसा का ही रूप है जो अन्न किसी कि भूख मिटा सकता था उसे आपने गटर में फैक दिया। यह पाप नहीं तो और क्या है?

इस तरह अनेक बाते ऐसी है जो परोक्ष हिंसा का कारण बनती है। वनस्पति, पानी, और पृथ्वी को व्यर्थ नष्ट करना यह भी भयंकर परोक्ष हिंसा है।

यदि अहिंसा की दृष्टि रखकर भी इनका उपयोग सीमित करे तो अहिंसा साधना के साथ राष्ट्र सेवा भी होगी। प्रवचन सभा का शुभारम्भ प्रवर्तक मदन मुनि जी के सूत्र स्वाध्याय पूर्वक प्रारम्भ हुआ। कोमल मुनि ने कविता पाठ किया। संचालन श्रावक संघ मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया। संघ के अध्यक्ष वीरेन्द्र डांगी ने अतिथियों का स्वागत किया।

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