झील विकास प्राधिकरण वेटलेण्ड संरक्षण कानूनो व सिद्धांतो पर आधारित हो


झील विकास प्राधिकरण वेटलेण्ड संरक्षण कानूनो व सिद्धांतो पर आधारित हो

"झीले तालाब महत्वपूर्ण वेटलेण्ड है। प्रस्तावित झील विकास प्राधिकरण वेटलेण्ड संरक्षण कानूनो व सिद्धांतो पर आधारित होना चाहिए" - यह राय डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा वेटलेंड डे पर आयोजित संगोष्ठी में उभर कर आयी।

 
झील विकास प्राधिकरण वेटलेण्ड संरक्षण कानूनो व सिद्धांतो पर आधारित हो

“झीले तालाब महत्वपूर्ण वेटलेण्ड है। प्रस्तावित झील विकास प्राधिकरण वेटलेण्ड संरक्षण कानूनो व सिद्धांतो पर आधारित होना चाहिए” – यह राय डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा वेटलेंड डे पर आयोजित संगोष्ठी में उभर कर आयी।

संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य अनिल मेहता ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार के वेटलेंड संरक्षण व प्रबन्ध के प्रस्ताव में झील तालाब की सीमा औसत अधिकतम भराव तल(एम् एम् डब्ल्यू एल )पर मानी गयी है जबकि राजस्थान में इस सीमा को नहीं मानकर एफ टी एल तक सिमित रखने का प्रस्ताव है।

इसके पीछे झील पेटे की जमीनो को भू माफियाओ को सौपना है। लेकिन इससे झीलो का पर्यावरणीय रूप से महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी क्षैत्र नष्ट हो जायेगा। ऐसे में रिव्यू कमेटी के अध्यक्ष गुलाब चंद कटारिया के दखल से इसे रोका जा सकता है।

झील संरक्षण समिति के सचिव डॉ तेज राज़दान एवं ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि विगत दिनों में फतह सागर और पिछोला झील के किनारो के भीतर हज़ारो टन मलबा डाल कर अवैध रूप से ज़मीने तैयार की गयी है। दूसरी तरफ कई छोटे मोटे तालाब भी ख़त्म हो गए है जिन्हे बचाया जा सकता था। इसमें बड़े षड्यंत्र व मिलीभगत का अंदेशा है। राज़दान व शर्मा ने कहा कि वेटलेंड बचाने में नागरिको की सहभागिता तथा प्रशानिक पकड़ जरुरी है।

चांदपोल नागरिक समिति के तेज शंकर पालीवाल व झील हितेषी नागरिक मंच के हाजी सरदार मोहम्मद ने कहा कि सीवरेज , कचरे व मलमूत्र से झीलो के पर्यावरण तंत्र एवं नागरिक स्वास्थ्य खतरे में है लेकिन इस तरफ शासन प्रशासन का ध्यान एवं इच्छा शक्ति कमजोर है। अपेक्षा है कि प्रशासन इस तरफ ध्यान देगा। इस अवसर पर पर्यावरण प्रेमियो ने झील क्षेत्र का भ्रमण भी किया।

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