झील सफाई श्रमदान में जुटे झील प्रेमी, उदयसागर प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार का आग्रह


झील सफाई श्रमदान में जुटे झील प्रेमी, उदयसागर प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार का आग्रह

पिछोला झील पर आयोजित झील सफाई श्रमदान में रविवार को झील क्षेत्र से बड़ी मात्रा जलीय घास,भारी मात्रा में घरेलू सामग्री, नारियल, पोलथिन व प्लास्टिक की बोतले निकाली गई।श्रमदान पश्चात् हुए सम्वाद में झील प्रेमी नागरिकों ने उदयसागर झील में निर्माणाधीन होटल के प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर मुख्य न्यायाधीश से पुनर्विचार करने का आग्रह किया ।

 
झील सफाई श्रमदान में जुटे झील प्रेमी, उदयसागर प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार का आग्रह
पिछोला झील पर आयोजित झील सफाई श्रमदान में रविवार को झील क्षेत्र से बड़ी मात्रा जलीय घास,भारी मात्रा में घरेलू सामग्री, नारियल, पोलथिन व प्लास्टिक की बोतले निकाली गई।

झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति व मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित श्रमदान में मोहन सिंह चौहान, रमेश चन्द्र राजपूत, विजय मारू, दीपक व्यास, नितिन सोनी, दुर्गा शंकर पुरोहित, सुमित विजय, तेज शंकर पालीवाल, डॉ अनिल मेहता व नन्द किशोर शर्मा ने भाग लिया।
श्रमदान पश्चात् हुए सम्वाद में झील प्रेमी नागरिकों ने उदयसागर झील में  निर्माणाधीन होटल के प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर मुख्य न्यायाधीश से पुनर्विचार करने का आग्रह किया ।
डॉ अनिल मेहता ने कहा कि उदयसागर झील में निर्माणाधीन होटल प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट ने  अक्टूबर  2014 में यह स्वीकारते हुए कि जिस टापू पर होटल बन रही है, वो डूब क्षेत्र से बाहर है, इस होटल के निर्माण को अनुमति दे दी थी। वंही, आश्चर्यजनक है कि उसी  कोर्ट ने बदला तथ्य स्वीकार कर,  होटल को झील  में मानते हुए, हाल ही मार्च माह में आदेश दिया है कि होटल के लिए रास्ता बनाने के लिए विकल्प खोजे जाये।
तेज शंकर पालीवाल ने  इन  दोनों फैसलो को परस्पर विरोधाभासी बताया है।   किसी भी कानून के तहत झील डूब में व्यावसायिक निर्माण नहीं हो सकता। अतः तत्कालीन अधिकारीयों ने टापू को झील किनारे व् निर्माणाधीन भू भाग को डूब क्षेत्र से बाहर घोषित कर कोर्ट में होटल निर्माण को जायज बता दिया। अब चूंकि होटल को झील पेटे में सड़क बनानी है तो कोर्ट ने उसके सम्मुख रखे तथ्यों को सही मानते हुए आदेश में होटल को झील मध्य में स्थित मान लिया है।
नंदकिशोर शर्मा ने कहा कि यह सामान्य समझ  की बात है कि कोई टापू या इसका कोई भाग डूब क्षेत्र से बाहर नहीं हो सकता। वंही कोई भी प्रचलित कानून झील पेटे से किसी व्यवसायी को रास्ता देने की अनुमति नहीं देता।सुप्रीम कोर्ट को समस्त तथ्यों की पुनः जाँच करवानी चाहिए।

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