उदयपुर। झीलें पूड़ी पकवान नही खाती लेकिन कतिपय लोगों ने त्यौहार के बचे पकवान, खाद्य सामग्री झील में डाल पानी व पर्यावरण को नुकसान पंहुचाया है। यह चिंता रविवार को आयोजित झील संवाद में व्यक्त की गई। संवाद का आयोजन झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति तथा गांधी मानव कल्याण समिति के साझे में हुआ।
संवाद में डॉ अनिल मेहता ने कहा कि होली, दीवाली, ईद इन विभिन्न त्यौहारों पर कई लोग पूड़ियाँ, रोटियां, मांस, आटा इत्यादि झील में डाल देते है। यह सामग्री सड़ती है व झील पर्यावरण को नुकसान पंहुचाती है। तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि वर्ष भर भी बची खाद्य सामग्री प्लास्टिक पॉलीथिन में बांध कर झीलों में फैंकी जाती है। यह खाद्य सामग्री झील की सतह पर तैरती रहती है तथा झीलों को गंदा बनाती है। नंदकिशोर शर्मा ने कहा कि शराब की बोतलों सहित इस तरह का खाद्य सामग्री विसर्जन अन्न देवता व जल देवता, दोनों के अपमान की तरह है।। यह एक गैर जिम्मेदार प्रवृति है।
संवाद से पूर्व हुए श्रमदान में पिछोला, अमरकुण्ड व हनुमान घाट पर झील क्षेत्र पर तैरती पूजन सामग्री, कपड़े, पॉलीथिन, अवशेष खाद्य रोटियां, वेपर्स पैक एवं शराब, पानी की बोतलें निकाली गई। श्रमदान में मोहन सिंह चौहान, पल्लव दत्ता, दिगम्बर सिंह, दृष्टि काफ़रिया, जलयोद्धा देवराज, द्रुपद सिंह, कुशल रावल, कृष्णा कोष्ठी, तेज शंकर पालीवाल, नन्द किशोर शर्मा ने भाग लिया।
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