रंगशाला में ‘‘आत्मकथा’’ के बहाने उधड़ी परतें


रंगशाला में ‘‘आत्मकथा’’ के बहाने उधड़ी परतें

यहां हवाला गांव स्थित शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में आयोजित रंगशाला में रविवार शाम जयपुर के रंगकर्मी और पुलिस प्रशासक सौरभ भट्ट द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘आत्मकथा’’ का मंचन किया गया जिसमें आत्मकथा के बहाने जहां जीवन की परतें उधड़ती है वहीं इससे रचनाकार की सृजन प्रक्रिया पर भी एक गम्भीर विचार वयक्त किया गया।

 
रंगशाला में ‘‘आत्मकथा’’ के बहाने उधड़ी परतें

यहां हवाला गांव स्थित शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में आयोजित रंगशाला में रविवार शाम जयपुर के रंगकर्मी और पुलिस प्रशासक सौरभ भट्ट द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘आत्मकथा’’ का मंचन किया गया जिसमें आत्मकथा के बहाने जहां जीवन की परतें उधड़ती है वहीं इससे रचनाकार की सृजन प्रक्रिया पर भी एक गम्भीर विचार वयक्त किया गया।

पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित मासिक नाट्य संध्या में जयपुर की संस्था गंधर्व थिएटर के कलाकारों द्वारा महेश एलकुंचवार के मराठी नाटक के अनुदित अंश तथा सौरभ श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित ‘‘आत्मकथा’’ का मंचन किया गया। घरेलू और पारिवारिक परिवेश के साथ आत्मकथा के बहाने रिश्तों के साथ-साथ सृजनशीलता के आयामों को नाटक में बखूबी अभिव्यक्त किया गया। नाटक एक प्रख्यात लेखक अनन्तराव राजाध्यक्ष पर केन्द्रित है जो अपनी आत्मकथा लिख रहा हे और अपनी रिसर्च स्टूडेन्ट प्रज्ञा से मदद लेता है। प्रज्ञा जिस विषय पर रिसर्च कर रही है वो भी राजाध्यक्ष के साहित्य और कृतित्व पर आधारित है। आत्मकथा लेखन के दौरान प्रज्ञा द्वारा पूछे गये प्रश्नों से राजाध्यक्ष के जीवन की कुछ व्यक्तिगत घटनाएं सामने आती है जिनसे कईयों के जीवन प्रभावित हुए हैं। राजाध्यक्ष की पत्नी उत्तरा उससे अलग रहती है किन्तु दोनों के बीच के वार्तालाप में दोनों का नजरिया जहां अलग होता है वहीं दोनों के सम्बन्धों की त्रासद घटना उद्घाटित भी होती है।

रंगशाला में ‘‘आत्मकथा’’ के बहाने उधड़ी परतें

नाटक दो धरातलों पर चलता है जहां एक ओर राजाध्यक्ष के पत्नी से सम्बन्धों के साथ एक मानवीय धरातल व भावनात्मक स्तर को अभिव्यक्त करता है वहीं दूसरी ओर राजाध्यक्ष और प्राज्ञा की रिसर्च के साथ एक सृजन प्रक्रिया और रचनाधर्मिता का संसार होता है। आखिर इस जद्दोजहद में जीवन की नकारात्मकता खत्म होती है और आनन्द और सौर्हाद्र व रिश्तों के प्रेम के मिठास का संचरण होता है। आत्मकथा के बहाने एक सौरभ श्रीवास्तव ने एक गम्भीर विषय को हृदयपर्शी टच देते हुए प्रस्तुति को प्रभावी बनाया। नाटक में मंच सज्जा जहां प्रभावी रही वहीं प्रकाश व्यवस्था ने नाटक को जीवन्त बनाया। कलाकारों में राजाध्यक्ष के किरदार में स्वयं सौरभ श्रीवास्तव ने अपने अभिनय से नाटक को सशक्त बनाय वहीं उत्तरा की भूमिका में किरण राठौड़ का भावप्रवण अभिनय दर्शनीय बन सका। स्टूडेन्ट प्रज्ञा के चरित्र में मृद्विका त्रिपाठी का अभिनय उत्कृष्ट बन सका वहीं वासंती के रूप में सुस्मिता श्रीवास्तव का अभिनय सराहनीय रहा। प्रकाश व्यवस्था यशेष पटेल ध्वनि संयोजन निधि शर्मा व ईशाी श्रीवास्तव का था।

रंगशाला में ‘‘आत्मकथा’’ के बहाने उधड़ी परतें

इस अवसर पर सम्भागीय आयुक्त श्री भवानी सिह देथा व पुलिस अधिक्षक राजेन्द्र प्रसाद गोयल, रंगकर्मी भानु भारती आदि उपस्थित थे।

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