संपति और सेवा का संयोजन कृष्ण से सीखे


संपति और सेवा का संयोजन कृष्ण से सीखे

कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर हम श्रीकृष्ण की उस भावना की गहराई तक पहुचें जिस भावना ने उन्हे सुदामा कि सेवा के लिये प्रेरित किया।

 

कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर हम श्रीकृष्ण की उस भावना की गहराई तक पहुचें जिस भावना ने उन्हे सुदामा कि सेवा के लिये प्रेरित किया।

संपति और साधनों की श्री कृष्ण के पास कोई कमी नही थी किन्तु इन सारी उपलब्धियों के बीच एक संवेदनशील मस्तिष्क भी उनको उपलब्ध था जिसने श्री कृष्ण को मैत्री के धरातल पर उतार कर मानवता की पावन गंगा के प्रवाह में बहा दिया। हमें संपत्ति व सेवा साधनों का संयोजन श्रीकृष्ण से सीखना चाहिये।

श्रमण संघीय महामंत्री श्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने आज पंचायती नोहरे में आयोजित ध्र्मासभा को संबोधित करते हुए उक्त बात कहीं। उन्होनें कहा कि सामान्य तथा व्यक्ति अपने स्वार्थ में ही इतना लिप्त रहता है कि उसे किसी कि पीड़ा को समझना तो दूर रहा उसकी कराह को भी नही सुनता। स्वार्थ कि इस पराकाष्ठा में ही दुर्जनों का निर्माण होता है।

व्यक्ति जब स्वयं अस्वस्थ अभावग्रस्त या विपदाओं में होता है तब उसकी समझ में आता है कि सेवा और सहयोग की कितनी आवश्यकता होती है। बिना कष्ट भोगे जो सेवा के महत्व को समझ लें ऐसे लोग महान पुरूष ही होते है।

मुनि जी ने बताया कि संपदा वैभव एक बाह्य पदार्थ है उनके साथ अपना जुड़ाव उतना ही होना चाहिये। जितना हमें अपने श्रम और नैतिकता के द्वार उपलब्ध है। यह महान दु:ख होगा कि व्यक्ति संपति सुविधा रूपी जड़ पदार्थो से जुडक़र जड़ जैसा ही हो जाए।

मुनि श्री ने बताया कि जीवन में सेवा और संपति साथ साथ रह सकती है मात्र संयोजन करने की कला हो संयोजन का विवेक श्री कृष्ण से सीख सकते है। सभा को विकसित मुनि ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम का संचालन श्रावक संघ मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया।

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