स्वदेशी समुदाय के बीच चिकित्सा पद्धतियों पर हुआ व्याख्यान


स्वदेशी समुदाय के बीच चिकित्सा पद्धतियों पर हुआ व्याख्यान

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित विस्तार व्याख्यान माला में प्राध्यापकों ने स्वदेशी समुदाय के बीच चिकित्सा पद्धतियों में अपने अनुसंधानों के आधार पर अनुभावों को विद्यार्थियों के साथ बांटा। कार्यशाला में मुख्य अतिथि इल्लाहबाद की मनोवैज्ञानिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अजित के.दलाल, प्रमुख वक्ता आर्ट्स कॉलेज डीन शरद श्रीवास्तव, मुख्य अतिथी प्रोफेसर अनिल कोठारी और विभागाध्यक्ष डॉ.कल्पना जैन रहीं।

 
स्वदेशी समुदाय के बीच चिकित्सा पद्धतियों पर हुआ व्याख्यान

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित विस्तार व्याख्यान माला में प्राध्यापकों ने स्वदेशी समुदाय के बीच चिकित्सा पद्धतियों में अपने अनुसंधानों के आधार पर अनुभावों को विद्यार्थियों के साथ बांटा। कार्यशाला में मुख्य अतिथि इल्लाहबाद की मनोवैज्ञानिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अजित के.दलाल, प्रमुख वक्ता आर्ट्स कॉलेज डीन शरद श्रीवास्तव, मुख्य अतिथी प्रोफेसर अनिल कोठारी और विभागाध्यक्ष डॉ.कल्पना जैन रहीं।

प्रोफेसर अजित के. दलाल ने स्वदेशी समुदाय के बीच चिकित्सा पद्धतियों के बारे में बताते हुए कहा कि चिकित्सा पद्धति तीन प्रकार की होती है सबसे पहली व्यावसायिक, दूसरी लोक, तीसरी अनौपचारिक जो पूरे संसार के सभी देशों की स्वदेशी समुदाय की मानसिक एवं शारीरिक रोगों के इलाज़ के लिए काम आती है। अनुसंधना में यह पाया गया है की यह प्रकार भी स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए प्रभावी रहे है।

उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत समस्या ऐसी है जिन्हें शरीर स्वयं ठीक कर सकता है। अजित ने कहा कि लोगों की नकारात्मक सोच उनके मृत्यु का कारण भी बन सकती है एवं लोगों को हमेशा एक सकारात्मक सोच लेकर ही आगे बढना चाहिए। मनोवैज्ञानिकों को इन पारंपरिक समस्याओं को एक नयी दृष्टि से देखना होगा।

आर्ट्स कॉलेज डीन शरद श्रीवास्तव ने बताया कि सभी के जीवन में सकारात्मक सोच एवं व्यवहार बहुत ही महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए ना केवल चिकित्सा की बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी स्वस्थ रहने की आवश्यकता है।

वही प्रोफेसर अनिल कोठारी ने कहा कि जो भी मान्यता है उनका दानिक जीवन में कुछ ना कुछ उपयोग होता है। मान्यताओं के पीछे छुपे हुए कारणों को जानने की कोशिश हमें करनी चाहिए एवं इस बात का ध्यान रखना चाहिए जो भी मान्यता अव्यवहारिक गलत है उनका खंडन करना चाहिए। वही विभागाध्यक्ष डॉ. कल्पना जैन ने कहा कि सकारात्मकता सोच और आशा के द्वारा व्यक्ति अपने प्रतिरक्षा प्रणाली को बड़ा सकता है।

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