महिला को भी खिलने दो


महिला को भी खिलने दो

हर महिला में पुरूष की तरह ‘स्व-सम्मान’ का भाव होता है, उसके ‘स्व-सम्मान’ को ठेस नहीं पहुँचनी चाहिए।महिला के हर निर्णय पर पुरूष का स्वामित्व गलत है, चाहे वह पारिवारिक निर्णय हो अथवा सामाजिक, व्यावसायिक, राजनैतिक या आर्थिक। महिला एक गृहणी के रूप में रहे या व्यवसायरत, यह निर्णय पुरूषों द्वारा किए जाते हैं, ऐसे निर्णय महिलाओ को स्वयं लेने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। विश्व की पचास प्रतिशत जनता की शक्तियों के सम्पूर्ण विकास से समाज के विकास का नक्शा बदला जा सकता है, जरूरत है उसे संकीर्ण मानसिकता वाली संस्कृति से बाहर लाने की।

 
महिला को भी खिलने दो

महिला शक्तिमान है, अनेकानेक शक्तियों की पुंज है तभी 2-3 मोर्चे एक साथ संभालने की क्षमता रखती है।महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिला की शक्तियों को उचित मंच मिले, उसकी क्षमताओं को पूर्णरूपेण खिलने का अवसर मिले। यहाँ यह कहना तर्कसंगत होगा कि महिला सशक्तिकरण का अर्थ पुरूषों के साथ बराबरी या स्पर्धा करना नहीं है। महिला व पुरूष ईश्वर द्वारा दो भिन्न सृजन है। अतः स्पर्धा की बजाय महिला अपने अन्दर निहित अपार शक्तियों को पहचाने तथा समाज व परिवार उन शक्तियों के विकास के अवसर सुलभ करवाए। महिला को भी खुशहाल जिन्दगी जीने का अधिकार है, अपने जीने के अधिकार का स्वामित्व पुरूष के हाथ न हो, उसे अपने निर्णय स्वयं लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

हर महिला में पुरूष की तरह ‘स्व-सम्मान’ का भाव होता है, उसके ‘स्व-सम्मान’ को ठेस नहीं पहुँचनी चाहिए।महिला के हर निर्णय पर पुरूष का स्वामित्व गलत है, चाहे वह पारिवारिक निर्णय हो अथवा सामाजिक, व्यावसायिक, राजनैतिक या आर्थिक। महिला एक गृहणी के रूप में रहे या व्यवसायरत, यह निर्णय पुरूषों द्वारा किए जाते हैं, ऐसे निर्णय महिलाओ को स्वयं लेने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।

महिला की शादी के बाद उसके अधिकारों में और कटौती हो जाती है।उसे क्या पहनना चाहिए, कैसे पहनना चाहिए, उसकी पसन्द नापसन्द अन्य परिवार सदस्यों द्वारा तय की जाती है। यह उसके जीने के अधिकार का हनन है।उसे अपनी राय रखने का हक है।

महिला सशक्तिकरण में लैगिंक संवेदनशीलता का भी समावेश है। कार्यस्थल पर सुरक्षित व आरामदायक वातावरण मुहैया किया जाना चाहिए। एक ही प्रकार के कार्य में वेतन में अन्तर नहीं किया जाना चाहिए। महिला की क्षमता व सुरक्षा को ध्यान में रखकर कार्यस्थल की योजना बनाई जानी चाहिए। यदि किसी कार्य स्थल पर देर रात तक रूकना सुरक्षित नहीं है तो महिला को नहीं रोका जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में यह तर्क देना असंगत होगा कि यदि पुरूष देर रात तक रूक सकते हैं तो महिला क्यों नहीं रूक सकती है।

विश्व की पचास प्रतिशत जनता की शक्तियों के सम्पूर्ण विकास से समाज के विकास का नक्शा बदला जा सकता है, जरूरत है उसे संकीर्ण मानसिकता वाली संस्कृति से बाहर लाने की।

वैसे आज हर क्षेत्र में चाहे अन्तरिक्ष हो, हवाईपायलट, रेलपायलट, सेना, राजनीति, कानून, इंजीनियर, डॉक्टर सभी क्षेत्रों में महिला अपना परचम फैला चुकी है। भविष्य में ऐसी महिलाओं की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।

महिला के आगे बढ़ने में पुरूष प्रधान मानसिकता एक बड़ी चुनौती है। वे अभी भी मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार नहीं हैं कि उन की संगिनी उनसे आगे बढ़ जाए।

अतः आवश्यकता इस बात की है कि लड़की के लालन-पालन से ही उसे लड़कों की तरह पढ़ने का, निर्णय लेने का तथा पूरी तरह खिलने का अवसर दिया जाना चाहिए।

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महिला को भी खिलने दोडॉ. सुषमा तलेसरा (प्रोफेसर)
विद्या भवन गो.से. शिक्षक महाविद्यालय (सीटीई)
उदयपुर (राज.)

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