ज्ञान और ध्यान के बिना जीवन अधूरा: सिंहल
थियोसोफिकल सोसायटी लॉज उदयपुर के सौजन्य से मध्यप्रदेश एवं राजस्थान थियासोफिकल फैडरेशन के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय 90वां वाषिक अधिवेशन शिक्षा भवन चौराहा स्थित सोसायटी लॉज के भवन प्रांगण में प्रारम्भ हुआ। इस अधिवेश में राजस्थान के विभिन्न शहरों सहित मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आये सदस्यों नेे भाग लिया।
थियोसोफिकल सोसायटी लॉज उदयपुर के सौजन्य से मध्यप्रदेश एवं राजस्थान थियासोफिकल फैडरेशन के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय 90वां वाषिक अधिवेशन शिक्षा भवन चौराहा स्थित सोसायटी लॉज के भवन प्रांगण में प्रारम्भ हुआ। इस अधिवेश में राजस्थान के विभिन्न शहरों सहित मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आये सदस्यों नेे भाग लिया।
अधिवेशन प्रात: 11 बजे उद्घाटन सत्र से प्रारम्भ हुआ। अधिवेशन के प्रथम सत्र में अज्ञानता समस्त बन्धनों का कारण एवं द्वितीय सत्र में ध्यान साध्य तक ले जाने का साधन नहींै, यह साध्य और साधन दोनों ही है, विषय पर संक्षिप्त व्याख्यान एवं परिचर्चा हुई जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने अपने- अपने विचार रखे।
पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष एम.पी. सिंहल ने ध्यान के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि जीवन में सबसे जरूरी वस्तु अगर कोई है तो वह है ध्यान। बिना ज्ञान और ध्यान के जीव अधूरा हाता है। कोई भी कार्य हो उसे ध्यान से और मन लगाकर ही करना चाहिये। छोटे से छोटा काम भी हो अगर हम उसे ध्यान से करेंगे, मनोयोग से करेंगे तो उससे जो ऊर्जा हमें मिलेगी वही भविष्य में सफलता के द्वार को खोलेगी।
उन्होंने कहा कि आप ध्यान करें, मन में सोचें क्या आप औरों के बारे में भी सोचते हैं, क्या आपके मन में शान्ति है, क्या आप दिन ब दिन अच्छे से अच्छे व्यक्ति बनते जा रहे हैं। उत्तर आपको स्वयं ही मिल जाएगा। कोई भी काम हो खुशी- खुशी, हंसते- हंसते और ध्यान से करें वह अच्छा होगा, सफल होगा और आपको बिल्कुल भी थकान नहीं महसूस हागी।
स्थानीय लॉज अध्यक्ष ज्ञानेश्वरी भट्ट ने लॉज के कार्यकलापों के बारे में विस्तृत चर्चा की। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि सारे दु:खों का, समस्त राग- द्वेषों का मूल कारण ही अज्ञानता है। ज्ञान साधन के साथ साध्य भी है। ज्ञान के दो प्रकार बताते हुए उन्होंने कहा कि जो ज्ञान एकाग्रता रख कर प्राप्त किया जाए वह साधन बन जाता है ओर जो एकान्त में रह कर ध्यान से अर्जित किया जाता है वह साध्य बन जाता है।
फैडरेशन अध्यक्ष जोधपुर के डॉ. कमल महनोत ने अधिवेशन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आपसी भाईचारा बढ़ाना आूेर मिल जुल कर रहना सिखाना यह सोसायटी की पहचान हैं। वर्ष में आठ बार इस तरह के आयोजन होते हैं और सभी सदस्य आपस में मिलते हैं, विभिन्न विषयों पर चर्चाएं होती है और विचारों का आदान- प्रदान कर सामाजिक एकता में और किस तरह से कार्य किया जा सकता है, इस पर मन्थन होता है।
रतलाम से आईं श्रीमती नीला जोशी ने अपने व्याख्यान में ध्यान पर खुल कर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमारा विशाल परिवार है लेकिन उससे भी महान बात है हमारा भाईचारा और आपसी सौहाद्र्र का वैश्विक सन्देश। भावनगर गुजरात से आई एक सदस्या ने ध्यान के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि ध्यान ऐसा शब्द हैं जिससे सभी परिचित हैं, लेकिन उसे समझते कम ही हैं। ध्यान के लिए कोई अलग से मेहनत करने की जरूरत नहीं, ध्यान कोई कठिन तकनीक नहीं है, ध्यान अपने जीवन की दैनिक अभिव्यक्ति मात्र है, ध्यान हमेशा निर्विचार है, ध्यान एक बीज है जो बाद में खत्म हो जाता है, लेकिन अपने पीछे सफलता का एक विशाल वट ्रवृक्ष छोड़ जाता है।
बीज को हम जमीन में बोते हैं, बीज तो खत्म हो जाता है लेकिन उससे जो उत्पन्न होता है वह विशाल वट वृक्ष होता है, उसी तरह ध्यान से अहंकार, राग, द्वेष जैसे बीज नष्ट होकर उनसे मानव से महात्मा बनने की राह प्रस्फुटित होती है। अधिवेशन के अध्यक्ष सज्जनसिंह राणावत (सेवानिवृत्त आईएएस) ने भी ध्यान और ज्ञान पर अपने सारगर्भित विचार रखे।
अधिवेशन के दूसरे सत्र में उपस्थित सदस्यों ने स्वैच्छा से अज्ञानता समस्त बन्धनों का कारण एवं ध्यान साध्य तक ले जाने का साधन नहीं यह साध्य और साधन दोनों ही है पर अपने- अपने विचार रखे। अधिवेशन का संचालन सचिव एमपी- राजस्थान डॉ. हरिशंकर द्विवेदी ने किया।
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