शास्त्र सुनने से नहीं, उसे अन्तःकरण में उतारने से होता है जीवन सफल

शास्त्र सुनने से नहीं, उसे अन्तःकरण में उतारने से होता है जीवन सफल

महाप्रज्ञ विहार में आचार्यश्री शिवमुनि ने कहा कि शास्त्र पढ़ने या सुनने से हमारें जीवन का रूपान्तरण नहीं होगा। यदि जीवन का रूपान्तरण करना है तोे जीवन में जो सीखा या सुना है उसे अन्तःकरण में उतारना होगा।

 

शास्त्र सुनने से नहीं, उसे अन्तःकरण में उतारने से होता है जीवन सफल

महाप्रज्ञ विहार में आचार्यश्री शिवमुनि ने कहा कि शास्त्र पढ़ने या सुनने से हमारें जीवन का रूपान्तरण नहीं होगा। यदि जीवन का रूपान्तरण करना है तोे जीवन में जो सीखा या सुना है उसे अन्तःकरण में उतारना होगा।

उन्होंने कहा कि शास्त्र को आत्मसात करो, उस पर चिन्तन-मनन करो। जीवन में सीखा या सुना हुआ ज्ञान जब तक आपके अन्तःकरण तक नहीं पहुंचेगा तब तक आपके जीवन का, आपके ज्ञान का रूपान्तरण नहीं होगा। शास्त्र पढ़ना, उन्हें सुनना यह सभी बुद्धि के ज्ञान हैं। इस ज्ञान का भीतर के ज्ञान से कोई लेना- देना नहीं हैं। बुद्धि और मन तो चंचल है इनका ज्ञान तो कभीं भी भटक सकता है लेकिन अन्तःकरण में पहुंचा भीतर का ज्ञान अनन्तकाल तक रहता है। यहीं भीतर का ज्ञान आपके कर्मों की निर्झरा भी करता है।

आचार्यश्री ने कहा कि जिस तरह से आप भोजन करते हो, लेकिन वह शरीर के भीतर जाकर पचे नहीं तो उस भोजन का क्या फायदा। नहीं पचने वाला भोजन शारीरिक कष्टों का कारक भी हो जाता है। भोजन को पचाने के लिए मेहनत भी करनी होती है। इसी तरह से जो भी ज्ञान हम अर्जित करते हैं उसे अन्तःकरण में उतारना जरूरी है। इसके लिए तप और साधना में तपना पड़ता है। तब जाकर वह ज्ञान आपके अन्तःकरण में स्थापित हो पाता है। ज्ञान तो आएगा और चला जाएगा लेकिन जो आत्मा का ज्ञान है, आत्म तत्व है उसे प्राप्त करने का प्रयास करो क्योंकि यही आपके साथ अनन्तकाल तक रहने वाला है।

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आचार्यश्री ने कहा कि अन्तःकरण में वो ज्ञान उतर नहीं पाता है क्योंकि हमारे भीतर जन्म जन्मों से काम, क्रोध, मान, माया, लोभ जैसे संसार के सारे मिथ्यात्व भरे पड़े हैं। जब तक हम इन मिथ्या तत्वों को छोड़ेंगे नहीं तब तक कैसा भी ज्ञान,धर्म,साधना, तप व आराधना हो लेकिन हमारे भीतर के अन्तःकरण में स्थापित नहीं हो पाऐंगे।

संघ अध्यक्ष ओंकारसिंह सिरोया व चातुर्मास संयोजक विरेन्द्र डांगी ने बताया कि शुभम मुनिश्री द्वारा उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन अनवरत जारी है। सूत्र में बताया गया है कि जीवन में संयम का पालन करो, प्रमाद को छोड़ो और अप्रमादि बनो यही मुक्ति का मार्ग है। सूत्र के श्रवण से समस्त पापों का नाश होता है और कर्मों की निर्झरा होती है। इसका श्रवण करने के लिए रोजाना सैंकड़ों श्रावक- श्राविकाएं प्रातः साढेे आठ बजे से ही महाप्रज्ञ विहार में पहुंच कर इस सूत्र का श्रवण कर अपने जीवन को निर्मल बना रहे हैं।

आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद लेने एवं उनके दर्शनार्थ देश के विभिन्न हिस्सों से श्रावक- श्राविकाओं का आना लगातार जारी है। शनिवार को भी कई श्रावक- श्राविकाएं आचार्यश्री के दर्शनार्थ महाप्रज्ञ विहार पहुंचे।

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