सामूहिक दुष्कर्म पीड़िताओं को साहित्यिक श्रृद्धांजली


सामूहिक दुष्कर्म पीड़िताओं को साहित्यिक श्रृद्धांजली

उदयपुर में हमदर्द एकता संस्थान ने देश की बालिकाओं के साथ हो रहे सामूहिक दुष्कर्म के खिलाफ काव्य संगोष्ठी आयोजित कर उन्हें सामूहिक साहित्यिक श्रद्धांजली दी। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक खुर्शीद नवाब ने दुख़्तरान-ए-मज़लूमीन नामक गोष्ठी में कहा कि हर साहित्यकार ने अपनी कलम की पैनी धार से उन बेकसूर बालिकाओं स्त्रियों का रचनाओं के माध्यम से सच्ची श्रद्धाजंली देने का प्रयास किया।

 
सामूहिक दुष्कर्म पीड़िताओं को साहित्यिक श्रृद्धांजली

उदयपुर में हमदर्द एकता संस्थान ने देश की बालिकाओं के साथ हो रहे सामूहिक दुष्कर्म के खिलाफ काव्य संगोष्ठी आयोजित कर उन्हें सामूहिक साहित्यिक श्रद्धांजली दी।

इस अवसर पर संस्थान के निदेशक खुर्शीद नवाब ने दुख़्तरान-ए-मज़लूमीन नामक गोष्ठी में कहा कि हर साहित्यकार ने अपनी कलम की पैनी धार से उन बेकसूर बालिकाओं स्त्रियों का रचनाओं के माध्यम से सच्ची श्रद्धाजंली देने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी नज़्म ये ज़मी सदमें में है, ये आसमां सदमें है, हिन्दू, मुस्लिम ही नहीं हिन्दोस्ता सदमे में है.., दीपक नगाइच ने हादसा बस्ती में फिर से हो गया…, लालदास पर्जन्य ने नज़र लगी मेरे देश को यारों किसी ओझा को बुलवाओ….सुनाकर वहशी दरिन्दों की शिकार मासूम, मरहूम बेटियों को साहित्यिक श्रद्धांजली दी।

डाॅ. इस्हाक फुरकत ने कोई बाबा, कोई पुजारी है, हर तरफ फैज़ इनका जारी है.., मनमोहन मधुकर ने अब कमी खलने लगी है संस्कारों की हमें, आ गई है पश्चिम आंधी हमारे देश में…., हबीब अनुरागी ने कुछ लोग फज़ाओं में जहर घोल रहे है…मुसलसल नज़्म पेश कर आज की राजनीति और व्यवस्थाओं पर करारा तंज कसा। शायर मुश्ताक चचंल ने अपनी मुसलसल नज़्म भ्रूण हत्या प्रस्तुत कर कार्यक्रम को उंचाईयां प्रदान की। डाॅ.गोपाल राजगोपाल ने अपनी रचना हत्या और दुष्कर्म की खबरें बारमबार, तारीखें बदली हुई, रोज़ वहीं अखबार.., सुनाकर देश में हो रहे घिनौने कृत्यों पर अफसोस जाहिर किया।

सरदार जगजीतसिंह निशात ने अपना दर्द इस अन्दाज में ये हरे पेड़ है, इनको न जलाओं लोगों, इनके जलने से बहुत तेज धुंआ रहता है…पेश किया। फादर नोबर्ट हारमन ने बताओं कोई जिन्दगी है कहाँ, थिरकती है लाशें, जिन्दा यहाँ .. पेश कर खूब दाद पायी।

युगधारा संस्था के संस्थापक डाॅ. ज्येाति प्रकाश ज्योतिपुंज ने दरिन्दगी का कोई मज़हब नहीं होता है, मज़हब सारे रो रहे है, कठुआ या मन्दसोर.. प्रस्तुत की।श्रीमती हुस्ना खुर्शीद ने उनकी महफिल में जो हम याद किये जाते है,ऐसा लगता है के बरबाद किये जाते है… गजल सुनाकर गोष्ठी को उंचाई प्रदान की। महशर अफगानी ने जंहा भी मां बहन बेटी की असमत टूट जाती है, वहां पर मरियमो-सीता की हिम्मत टूट जाती है…पेश कर गोष्ठी को गरिमा प्रदान की। अंत में खुर्शीद नवाब ने आभार ज्ञापित किया।

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