संयम से जीएं आनन्दपूर्वक जीवन
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि मसा. कुमुद ने कहा कि सुखपूर्वक जीने का सर्वोतम मार्ग संयम है। हम संयम पूर्वक जीवन जीयें तो अनेक संकट सहज ही समाप्त हो जायेगें। स्वर्ग और नरक ये परलोक के नाम है किन्तु यहाँ भी हम स्वर्ग नरक का निर्माण कर सकते हैं।
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि मसा. कुमुद ने कहा कि सुखपूर्वक जीने का सर्वोतम मार्ग संयम है। हम संयम पूर्वक जीवन जीयें तो अनेक संकट सहज ही समाप्त हो जायेगें। स्वर्ग और नरक ये परलोक के नाम है किन्तु यहाँ भी हम स्वर्ग नरक का निर्माण कर सकते हैं। हम अपनी कमी को स्वयं पहचानने लगेंगे तो हमारें आस-पास स्वर्गमय वातावरण बनता चला जायेगा और यदि प्रत्येक दुर्घटनाएं व अन्य कोई कारण मानेगें और स्वयं की समीक्षा नही करेगें तो आपका घर नरक बन जाएगा।
वे आज वे आज पंचायती नोहरे में ‘आनन्दपूर्वक जीवन कैसे जीएं’ विषय पर आयोजित विशेष प्रवचनमाला के तहत उपस्थित धर्मप्रेमियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होनें कहा कि प्रतिस्पर्धा ही करनी है तो किसी महानकार्य को हाथ में लेकर करो, केवल निरर्थक प्रदर्शन की होड़ में बर्बाद हो जाना कोई बुद्धिमता की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि धन एक उत्पादक द्रव्य हैं। यह अनेक अच्छे कार्यो का उत्पादन कर सकता हैं लेकिन यही धन यदि प्रदर्शन की होड़ में उड़ा दिया जाता है तो वह भयंकर संकट का कारण बन जाता हैं। प्रदर्शन से धन तो चला जाता हैं लेकिन पीछे दुश्चिंताओं और दु:ख छोड़ जाता हैं।
उन्होनें कहा कि मानव आज तनावों में जी रहा हैं। दुश्चिंताओं से घिरा हुआ हैं। उसका मूल कारण हैं प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन। सामाजिक जीवन के संदर्भ में आज व्यक्ति एक निरर्थक प्रतिस्पर्धा में जी रहा है। यह प्रतिस्पर्धा किसी अच्छे कार्य की नहीं हैं। यह प्रतिस्पर्धा है प्रदर्शन की। व्यक्ति स्वयं को अन्य के सामने और उससे बढऩे के नाम पर होड़ करने में पड़ा हुआ। अपने सामथ्र्य से भी और अधिक अनुत्पादक व्यय करके स्वयं दु:खों और चिन्ताओं को निमन्त्रण दे रहा हैं।
इस अवसर पर बड़े ओसवाल सभा के मंत्री अनिल कोठारी तथा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शांतिलाल चपलोत का स्वगात किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्रावक संघ महामंत्री हिम्मत बड़ाला ने कियाऋमुनिजी ने कहा प्रतिस्पर्धा ही करनी है तो किसी महानकार्य को हाथ में लेकर करो केवल निरर्थक प्रदर्शन की होड़ में बर्बाद हो जाना कोई बुद्धिमता की बात ही हैद्य उन्होंने कहा कि धन एक उत्पादक द्रव्य हैंए यह अनेक अच्छे कार्यो का उत्पादन कर सकता हैंद्य किन्तु यह धन प्रदर्शन की होड़ में उड़ा दिया जाता है तो भयंकर संकट का कारण बन जाता हैंद्य प्रदर्शन से धन तो चला जाता हैं पीछे दुश्चिंताओं और दु:ख छोड़ जाता है।
वीरेन्द्र डॉगी की अध्यक्षता में चातुर्मास व्यस्था समिति की बैठक हुई। जिसमें चातुर्मास सम्बंधित व्यस्थाओं पर समीक्षा की गयी। इस बैठक में सवा सौ लोग मौजूद थे।
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