सेवा को दिनचर्या का अंग बनायेें
मनुष्य ने जिन हजारों हाथों के सहयोग से जीवन में कुछ हासिल किया है उसकी तुलना में उसका भी दायित्व बनता है कि वह समाज में जरूरतमंदो की सेवा के लिए सेवा को अपनी दिनचर्या का अंग बनायें।
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मनुष्य ने जिन हजारों हाथों के सहयोग से जीवन में कुछ हासिल किया है उसकी तुलना में उसका भी दायित्व बनता है कि वह समाज में जरूरतमंदो की सेवा के लिए सेवा को अपनी दिनचर्या का अंग बनायें।
उक्त विचार श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने पंचायती नोहरा में आयोजित विशाल धर्म सभा को समबेधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि अपना स्वार्थ तो पशु पक्षी साधते है लेकिन मानव को परमार्थ साधना चाहिये क्योंकि वह इसके भी योग्य है। मुनि ने कहा कि ऐसा नही सोचना चाहिये कि धन संपति से संपन्न होने पर ही सेवा कर सकते है। सेवा के लिये तो तन और मन सेवा में प्रयुक्त हो जाए तो धन से की गई सेवा की अपेक्षा तन और मन से की गई सेवा अधिक सार्थक होती है।
उन्होंने कहा कि आज मानव का मन कोमल नही रह गया है, पत्थर की भंाति कठोर हो गया है। उसके मन की संवेदनाएं मर चुकी है। अपने सामने घायल तडपते हुए मानव को देखकर भी व्यक्ति का मानस नहीं हिलता हैं। ऐसी कठोरता तो मानव मानव के मन में भी नही थी। हिंसा कि प्रचुरता निरंतर हिंसा को देख पढक़र वह संवेदनहीन हो गया है। आज जो जन जीवन में उपद्रव और क्रिया व्याप्त है वह कठोर मानस की देन है। पशुओ में भी सवेदना पाई जाती हैं, किन्तु आज मानव संवेदना के क्षेत्र में पशुओं से भी पीछे होता जा रहा है।
परमात्मा उसी के हृदय में निवास करते हैं जिसके ह्दय के भीतर मानवीय संवदेननाएं है। नमन की व्याख्या करते हुए मुनि ने स्पष्ट किया कि जिसका मन अपना नही रह जाता वह नमन हैं। जब हम माता पिता गुरू या परमात्मा को नमन करते है तो सोचना चाहिये कि अब मेरा मन माता पिता या गुरू या परमात्मा का हो गया है। मेरा नही रहा। उनका मन है तो जो वे चाहे वैसा ही मुझे वरतना है। नमन जीवन में व्याप्त अहंकारो को निरस्त करने का सरल तरीका है। नमन से सारे अहंकार गल जाते है। किन्तु वह नमन सच्चे मन से होना चाहिये। कपट पूर्ण किया गया नमन पाप तथा क्लेश को बढायेगा।
संचालन महामंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया तथा स्वागत अध्यक्ष वीरेन्द्र डांगी ने किया
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