सुरों से झरा मल्हार, भरत नाट्यम की सुंदर प्रस्तुति
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित शास्त्रीय संगीत और नृत्य संध्या ‘‘मल्हार’’ शुक्रवार को प्रारम्भ हुआ। पहले दिन नई दिल्ली के संगम समूह ने शास्त्रीय फ्यूज़न में जहां हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत के फ्यूजन के जरिये मेघ मल्
Bharatnatyam
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित शास्त्रीय संगीत और नृत्य संध्या ‘‘मल्हार’’ शुक्रवार को प्रारम्भ हुआ। पहले दिन नई दिल्ली के संगम समूह ने शास्त्रीय फ्यूज़न में जहां हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत के फ्यूजन के जरिये मेघ मल्हार का अभिवादन किया वहीं भरतनाट्यम में दक्षिण व उत्तर भारतीय कला का अनूठा संगम ‘‘कृष्ण गंगा में देखने को मिला।
शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में आयोजित दो दिवसीय संध्या का उद्घाटन वरिष्ठ संगीतकार डॉ प्रेम भण्डारी, महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल ट्रस्ट के श्री भूपेन्द्र सिंह आहवा, नृत्यांगना कनका सुधाकर, अविनाश कुमार तथा केन्द्र निदेशक फुरकान खान द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके किया गया। मल्हार आयोजन की पहली प्रस्तुति शास्त्रीय फ्यूजन की थी जिसमें दिल्ली के युवा कलाकारों ने गायन और वादन में हिन्दुस्तानी व कर्नाटक संगीत का अनूठा मिश्रण पेश किया। अठाइस वर्ष की उम्र के कलाकारों ने अपने कार्यक्रम की शुरूआत राग मेघ से की जिसमें आलाप, जोड़ झाला में सुरों की अनूठी स्वर सरिता प्रवाहित हुई। प्रस्तुति मे तबला जहां हिन्दुस्तानी संगीत का आभास दे रहा था वहीं मृदंगम् कर्नाटक संगीत का फ्लेवर दे रही थी। युवा गायक युगल अविनाश कुमार तथा रिन्दाना रहस्या ने अपने कंठ संगीत से समांसा बांध दिया।
इसके बाद इन्होंने दो बंदिशें पेश की जो राग मेघ पर आधारित थी। इन्ही कलाकारों ने इसके बाद राग गोड मल्हार जिसमें तिलाना, वृंदावनी सारंग व भीम पलासी का समावेश सुना कर दर्शकों की दाद बटोरी। कार्यक्रम में इनके द्वारा राग मेघ पर आधारित गीत ‘‘पांचम के बदरिया, बरसे मेघ बदरवा…’’ की प्रस्तुति कर्णप्रिय बन सकी। इनमें बांसुरी पर रवीन्दर राजपूत, सितार पर सौमित्र ठाकुर, तबले पर महावीर चन्द्रावत तथा मृदंगम पर मनोहर बालचन्द्रन ने संगत की।
मल्हार के पहले दिन की दूसरी प्रस्तुति भरतनाट्यम शैली में नृत्य नाटिका ‘‘कृष्ण गंगा’’ थी। प्रख्यात गुरू कनका सुधाकर द्वारा निर्देशित इस नृत्य नाटिका में उत्तर व दक्षिण भारत की कला की सुंदर व मनोरम ब्लैंडिंग देखने को मिली। भरतनाट्यम शैली में निबद्ध इस रचना में गुरू कनक सुधाकर ने बनारस के गुरू रामदास के पदों को अपने साथियों के साथ उत्कृष्ट अंदाज में दर्शाया। गुरू रामदास अपने पदों में अपने हरि को तलाशते हैं गंगा के किनारे बनारस के वासी रामदास के पदों में वे श्री कृष्ण को ढूंढते हैं।
भरतनाट्यम शैली में इस प्रस्तुति में उत्तर भारतीय गायकी की बंदिशें, खयाल, ठुमरी, दादरा आदि देखना एक नूतन अनुभव बन सका जिसमें रामदास वर्षा ऋतु व मेघों को देख कर उनमें अपने हरि के दर्शन करते हैं। इसकी शुरूआत वे बनारस के दुण्डी विनायक की स्तुति से करते हैं।
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भरतनाट्यम की इस प्रस्तुति में अपराजिता सरमा, पूर्णिमा श्यामसुंदर, तान्या गंभीर, उपासना गगनेज, आश्ति रामन व प्रहरिनी बदलानी ने अपने नर्तन का जौहर दिखाया। इनके साथ नटवंगम पर स्वयं गुरू कनका सुधाकर, गायन में राजनन्दिनी, मृदंगम पर मनोहर बालचन्द्रन, बांसुरी पर किरन कुमार शर्मा, सारंगी पर जुनैद व तबले पर देवाशीष अधिकारी ने संगत की।
म्लहार के दूसरे दिन शनिवार शाम डॉ. मीता पंडित का गायन तथा गौरी दिवाकर व उनके साथियों का कत्थक मुख्य प्रस्तुति होगी।
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