मनुष्य आवश्यकताओं की बजाय अपेक्षाओं के लिए दौड़ रहा
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि आवश्यकताओं का समाधान हो सकता है लेकिन अपेक्षाओं कि पूर्ति असंभव है। आज मनुष्य आवश्यकताओं के लिये नहीं अपेक्षाओं के लिए दौड़ रहा है। वर्तमान में उसकी अपेक्षाएं असीम हो गई है और यही उसकी अशांति का सबसे बड़ा कारण हैं।
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि आवश्यकताओं का समाधान हो सकता है लेकिन अपेक्षाओं कि पूर्ति असंभव है। आज मनुष्य आवश्यकताओं के लिये नहीं अपेक्षाओं के लिए दौड़ रहा है। वर्तमान में उसकी अपेक्षाएं असीम हो गई है और यही उसकी अशांति का सबसे बड़ा कारण हैं।
वे आज पंचायती नोहरे में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि तृष्णा के बढ़ते विस्तार को रोका जा सके तो मानव समाज में व्याप्त संघर्षो को नि:शेष किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मानव की अपेक्षाएं असीम तृष्णा की ही देन है जिस कारण आज हमारा देश दु:ख और क्लेशों का भण्ड़ार बन गया है, चारों ओर संघर्ष आग की तरह फैल रहे है।
प्रत्येक व्यक्ति छीना झपटी में लगा हुआ है, अपने हक में अधिक से अधिक दबा लेने की कोशिश में लगा हुआ है।
मुनि ने कहा कि आज प्रतिस्पर्धा का अर्थ बदल गया है। प्रतिस्पर्धा जो राष्ट्र सेवा आत्मोत्थान में होनी चाहिये वह आज भ्रष्टाचार और बुराइयों में व्याप्त हो गई है। तृष्णा भी एक आग है इसमें ज्यों-ज्यों ईंधन दिया जाता है यह बढ़ती है इसे समाप्त करने का सीधा उपाय है, इसकी पूर्ति न की जाय।
तृष्णा की मांग यदि मानी ही नही जायेगी, तो यह स्वत: समाप्त हो जायेगी और वहीं आत्म संतोष का एक अमृत तत्व व्याप्त हो जायेगा। सभा को विकसित मुनि ने भी सम्बोधित किया तथा कार्यक्रम का संचालन श्रावक संघ के महामंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया।
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