झीलो तालाबों नदियों के आस पास वही विकास होना चाहिए जो इन जलस्त्रोतों के इको सिस्टम (पारिस्थितिक तंत्र) को कोई नुकसान नहीं पंहुचाता हो। यह राय रविवार को झील सरंक्षण संवाद में उभरी।
उल्लेखनीय है कि शनिवार को मंत्री किरण ने भी नगर नियोजको से झील पर्यावरण एवं विकास में संतुलन रखने का आह्वान किया था।अनिल मेहता ने कहा कि मास्टर प्लान पानी, पहाड़, पर्यावरण को केंद्र में रखकर बनाये जाने चाहिए। अफ़सोस इस बात का है कि मास्टर प्लान नेताओ तथा भू एवं निर्माण व्यवसाइयों के दबाव में उनके हितों की पूर्ति पर केंद्रित होते हैं।
तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि जब मास्टर प्लान नहीं थे, तब नगर में झील, तालाब, कुंवे, बावड़ियां, सज्जन निवास, सहेलियों की बॉडी जैसे बाग बने व् आबाद रहे। नगरीय योजना की प्रक्रिया प्रारम्भ होने के बाद हम इन पर्यावरणीय विरासतों की दुर्दशा ही कर रहे हैं। पेयजल की झील में सीवर लाइन बिछाना नगर नियोजन पर सबसे बड़ा प्रश्न चिन्ह है। नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि समाजिकता एवं संस्कृति किसी भी नगरीय जीवन के लिए महत्वपूर्ण आयाम है। तकनिकी सरंचनाओं एवं नवीन निर्माणों, विकास में मानव व्यहवार एवं मानव समाज की इस मूल प्रकृति का समावेश होना चाहिए।
संवाद का आयोजन झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति एवं डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के तत्वावधान में हुआ। इससे पूर्व अलसुबह पिछोला के अमरकुंड पर आयोजित श्रमदान में झील से पॉलीथिन,पूजन सामग्री, घरेलू कचरा एवं भारी मात्रा में जलीय खरपतवार निकाली गई एवं घाटों को स्वच्छ किया गया।
श्रमदान में मोहन सिंह चौहान, रमेश चन्द्र राजपूत, राम प्रताप जेठी, सरस्वती देवी, विजय मारू, हरीश पालीवाल, दीपेश स्वर्णकार, पल्लव दत्ता, डॉ अनिल मेहता व नन्द किशोर शर्मा ने भाग लिया ।