शहीद हेमू कालानी को याद किया
मू किशोरवय में ही अपने साथियों के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। सन् 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया। 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना की हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी तो हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि यदि हेमू अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी। 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दे दी गई। जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पू
शहीद हेमू कालानी की पुण्यतिथि पर टाऊन हॉल स्थित शहीद स्मारक पर श्रृद्धांजलि सभा आयोजित की गई। जिसमें शहीद हेमू कालानी के जीवन को याद करते हुए उन्हें नरेन्द्र मोदी विचार मंच, उदयपुर और विभिन्न संगठनों की ओर से श्रृद्धांजलि अर्पित की गई। हेमू कालानी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध के सख्खर (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था।
हेमू किशोरवय में ही अपने साथियों के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। सन् 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया। 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना की हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी तो हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि यदि हेमू अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी। 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दे दी गई। जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया।
मंच के संभागीय अध्यक्ष सुनिल कुमार खुराना, ने बताया कि इस अवसर पर भारत माता की जय, हेमू कालानी अमर रहे के नारे लगाए गये। कार्यक्रम में सम्भाग संगठन महामंत्री कमलेश कुमावत, सम्भाग उपाध्यक्ष बृजेश सेठी, जिला अध्यक्ष अरविन्द अजमेरा, जिला मंत्री रोहित टांक, बंशीलाल शर्मा, हीरालाल, लोकेंद्र आदि कार्यकर्ताओं सहित मेवाड़ सिंधु ब्रिगेड के अध्यक्ष प्रकाश रूचंदानी, राजेश तलदार और सिन्धी समाज के अध्यक्ष तीरथ दास नेभनानी उपस्थित सहित अनेक अतिथि एवं समाजजन मौजूद थे।
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