मोबाईल चोरो की गैंग एमएनसी की तर्ज़ पर करती थी काम, वीकेंड की छुट्टी के साथ टारगेट भी दिया जाता था

मोबाईल चोरो की गैंग एमएनसी की तर्ज़ पर करती थी काम, वीकेंड की छुट्टी के साथ टारगेट भी दिया जाता था

आजकल चोर भी संगठित होकर मल्टीनेशनल कंपनी की तरह काम कर रहे है। जहाँ बाकायदा चोरो को वीकेंड की दो छुट्टिया (शनिवार रविवार) मिलती है। यहाँ चोरो को टारगेट दिया जाता है। टारगेट पूरा होने पर यानि मोबाईल फोन चुराने पर 500 रुपया मेहनताना और खाना मिलता था। जी हां यह कहानी है दिल्ली के एक मोबाईल चोर गैंग की।

 

मोबाईल चोरो की गैंग एमएनसी की तर्ज़ पर करती थी काम, वीकेंड की छुट्टी के साथ टारगेट भी दिया जाता था

आजकल चोर भी संगठित होकर मल्टीनेशनल कंपनी की तरह काम कर रहे है। जहाँ बाकायदा चोरो को वीकेंड की दो छुट्टिया (शनिवार रविवार) मिलती है। यहाँ चोरो को टारगेट दिया जाता है। टारगेट पूरा होने पर यानि मोबाईल फोन चुराने पर 500 रुपया मेहनताना और खाना मिलता था। जी हां यह कहानी है दिल्ली के एक मोबाईल चोर गैंग की।

साउथ दिल्ली पुलिस ने बसों में यात्रा करने वालों के मोबाइल फोन चुराने वाला गैंग असल में गैंग नहीं, एनएनसी की तरह काम करता था।गैंग के सरगना ने पुलिस से कहा कि उनका गैंग नहीं, कंपनी थी, किसी मल्टी नैशनल कंपनी (एमएनसी) जैसी। टारगेट पूरा होने यानी मोबाइल फोन चुराने पर रोज मेहनताना देते थे और हफ्ते में दो दिन छुट्टी रहती थी।

पुलिस के अनुसार चोरो से हफ्ते में पांच दिन काम लिया जाता था। शनिवार-रविवार छुट्टी रहती थी। साथ ही ‘कंपनी’ में ‘नौकरी’ पर रखे जाने वाले स्टाफ को हर दिन 500 रुपये देने के साथ ही वेज-नॉनवेज और दारू देते थे। काम यानी मोबाइल फोन चुराने का टारगेट पूरा करने के बाद। गिरफ्तार बदमाशों में चमन लाल उर्फ सुभाष (28), बोपी बिश्वास (32), ओम प्रकाश उर्फ पहलवान (39) और ज्ञानेश (23) हैं।

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चोरों की इस ‘कंपनी’ का सरदार चमन लाल था। उसका राइट हैंड है बोपी बिश्वास। ओम प्रकाश और ज्ञानेश को उन्होंने नौकरी पर रखा था। इसके अलावा भी कुछ और लोगों के गैंग में होने का शक है। महीने में शुरू के 10 दिनों तक अधिक मेहनत करते थे। दिल्ली के किसी भी इलाके में वे मोबाइल चुरा सकते थे, लेकिन उनके पसंदीदा बस रूटों में एमबी रोड से बदरपुर, कालका मंदिर से मां आनंदमयी मार्ग, आउटर रिंग रोड और बीआरटी पर चलने वाली डीटीसी और क्लस्टर बसें थीं। वे हर दिन कम से कम 7-8 मोबाइल फोन चुरा लेते थे।

पुलिस के अनुसार चुराए गए फोनों को वे दिल्ली में नहीं बेचते थे। पंजाब के गुरुदासपुर में रहने वाला सनी उनसे दिल्ली आकर हर सप्ताह मोबाइल फोन खरीदकर ले जाता था। चुराए जाने वाले मोबाइल फोनों में आई-फोन की कीमत कम मिलती है, क्योंकि आसानी से इसका ईएमईआई नंबर नहीं बदल पाता और इसके पार्ट्स बेचने में भी समस्या है। इन फोनों को रखने वाले अधिकतर कस्टमर ऑथराइज्ड सेंटरों से ही अपने फोन सही कराते हैं। इनके पार्ट्स या फोन बेचने पर एक फोन का 1000-1500 रुपये ही मिलता था। सबसे अधिक कीमत सैमसंग के फोन की मिलती थी। चोर बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती थी। मगर इसका महंगा फोन भी 10 हजार से अधिक में नहीं बिकता था।

पुलिस ने गुरुदासपुर में सनी को पकड़ने के लिए रेड डाली, लेकिन वह बच निकला। बसों में फोन चुराने के लिए इनका गैंग बस के पीछे-पीछे ऑटो लेकर चलता था। चलती बस में फोन चुराने के बाद वे लोग उतरकर ऑटो में सवार हो जाते थे।

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