एम.पी.यू.ए.टी. को लगातार मिला तीसरा सम्मान


एम.पी.यू.ए.टी. को लगातार मिला तीसरा सम्मान

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के कृषि विज्ञान केन्द, बांसवाड़ा को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा खण्ड . टप् का वर्ष 2013 के लिए सर्वश्रेष्ठ कृषि विज्ञान केन्द सम्मान प्रदान किया गया है।

 

एम.पी.यू.ए.टी. को लगातार मिला तीसरा सम्मान

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के कृषि विज्ञान केन्द, बांसवाड़ा को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा खण्ड . टप् का वर्ष 2013 के लिए सर्वश्रेष्ठ कृषि विज्ञान केन्द सम्मान प्रदान किया गया है।

नई दिल्ली में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. ओ. पी. गिल, प्रसार निदेशक डॉ. आई. जे. माथुर एवं कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आर. एल. सोनी ने यह सम्मान दिनांक 15 मई 2015 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों तथा आई.सी.ए.आर. के निदेशकों के वार्षिक सम्मेलन में केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री श्री मोहन भाई कुंडारिया से प्राप्त किया।

इस अवसर पर आई.सी.ए.आर. के महानिदेशक डॉ. एस. अय्यपन, इंडियन एग्रीकल्चरल यूर्निवसीटीज एसोशिएशन के अध्यक्ष डॉ. एम. एल. चौधरी सहित कई प्रमुख कृषि वैज्ञानिक उपस्थित थे। खण्ड . टप् मंे गुजरात व राजस्थान राज्यों के 70 कृषि विज्ञान केन्द्र कार्यरत है। कृषि विज्ञान केन्द, बांसवाड़ा ने कृषि प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण तथा कृषकों की सामाजिक- आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु उत्कृष्ठ कार्य किया।

केन्द्र द्वारा विगत 5 वर्षो में आयोजित गतिविधियों का मूल्यांकन किया गया तथा उसी आधार पर कृषि विज्ञान केन्द, बांसवाड़ा का चयन वर्ष 2013 के सम्मान के लिए किया गया। सम्मान में प्रशंसा पत्र के साथ ही 4.00 लाख रूपये की राशि केन्द्र को प्रदान की गई।

केन्द्र ने बांसवाड़ा जिले में विभिन्न फसलों की उत्पादकता बढ़ाने हेतु वृहद स्तर पर प्रथम पंक्ति प्रदर्शनों का आयोजन किया, परिणामस्वरूप जिलें में पारम्परिक फसलों की उत्पादकता में 26-150 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। केन्द्र ने मक्का की उत्पादकता बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किये तथा वर्ष 2008 में वृहद स्तर पर संकर मक्का के प्रदर्शन आयोजित किये जिससे मक्का की उत्पादकता दुगुनी हो गई।

आज बांसवाड़ा में संकर मक्का के क्षेत्र में काफी वृद्धि हो चुकी है। साथ ही किसानों को अधिक आय हेतु सब्जी उत्पादन की ओर अग्रसर किया गया। केन्द्र ने 7345 जनजाति कृषकों को सब्जी उत्पादन से जोड़ा तथा वे एक बीघा क्षेत्र से 50000 – 60000 रूपये कमा रहे है। केन्द्र ने 78 हैक्टर क्षेत्र में आम व अन्य फलदार वृक्षों के बगीचे भी स्थापित किये। पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने के लिए केन्द्र ने विशेष प्रयास किये।

बकरियों की नस्ल सुधारने के लिए 86 सिरोही नस्ल के बीज बकरे उपलब्ध करवाये गये जिससे 4000 से अधिक उन्नल नस्ल की संतति प्राप्त हुई। भूमिहीन व सीमान्त कृषकों की आजीविका सुनिश्चित करने के लिए 633 निर्भीक व प्रताप-धन की मुर्गी इकाई उपलब्ध करवाई गई जिससे कृषक परिवारों को प्रति इकाई 9500 – 10000 रूपये प्राप्त हो रहे है।

केन्द्र ने मछली पालन को भी बढ़ावा दिया तथा 150 हैक्टर जल क्षेत्र में 3.5 करोड़ बीज उपलब्ध करवाकर 268 मछुआरों की आजीविका सुनिश्चित की ।

केन्द्र ने राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के अन्तर्गत 16 गॉवों के 3300 परिवारों की आजीविका सुनिश्चित की। इस परियोजना के अन्तर्गत प्रसार कार्यो को अधिक प्रभावी बनाने के लिए नव अन्वेषण किये गये।

इनमें प्रमुख थे – कृषकों को संगठित कर कृषक व्यवसाय समूहों का गठन व उत्पादन कम्पनी की स्थापना, सस्टेनेबिलिटी फण्ड, गॉव व कलस्टर कमेटियों का गठन, ग्रामीण प्रौद्योगिकी केन्द्रों की स्थापना। केन्द्र ने 890 कृषकों को संगठित कर 66 कृषक व्यवसाय समूहों का गठन किया तथा जाम्बूखण्ड एग्रो प्रोड्यूसर कम्पनी की स्थापना की। इस कम्पनी का सालाना व्यवसाय 50 लाख रूपये है।

केन्द्र द्वारा स्थापित सस्टेनेबिलिटी फण्ड में कृषकों की हिस्सा राशि 65 लाख रूपये थी जिससे परियोजना समाप्ति के बाद भी इन गॉवों में विभिन्न गतिविधियों का संचालन हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि पिछले लगातार दो वर्षों यथा क्रमशः वर्ष 2011 और वर्ष 2012 के लिये भी ये सम्मान इस विश्वविद्यालय के अधीन रहे कृषि विज्ञान केन्द्र बारां और कृषि विज्ञान केन्द्र सिरोही को प्रदान किया गया था।

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