एमपीयूएटी ने आकस्मिक फसल प्रबंधन के लिए कमर कसी
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर. भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी दीर्घावधि पूर्वानुमान के अनुसार उत्तर-पश्चिमी भारत में औसत से 15 प्रतिशत कम वर्षा होने का अनुमान है। दक्षिणी राजस्थान में सामान्यत: मानसून जून के अंतिम सप्ताह में प्रवेश कर जाता है। लेकिन इस वर्ष मानसून का प्रवेश 15 जुलाई तक भी नहीं हुआ है।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर. भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी दीर्घावधि पूर्वानुमान के अनुसार उत्तर-पश्चिमी भारत में औसत से 15 प्रतिशत कम वर्षा होने का अनुमान है। दक्षिणी राजस्थान में सामान्यत: मानसून जून के अंतिम सप्ताह में प्रवेश कर जाता है। लेकिन इस वर्ष मानसून का प्रवेश 15 जुलाई तक भी नहीं हुआ है।
मानसून की देरी से आने की संभावना को देखते हुए आकस्मिक फसल प्रबंधन योजना को अपनाने की जरूरत है जिससे कि मानसून की वर्तमान स्थिति के मद्देनजर फसल उत्पादन में जोखिम को कम किया जा सके। इस संबंध में एक आकस्मिक फसल प्रबंधन योजना बनाने के लिए एक बैठक का आयोजन मंगलवार 15 जुलाई को अनुसंधान निदेशालय के सभागार में कुलपति प्रो. ओ.पी. गिल की अध्यक्षता में किया गया जिसमें निदेशक अनुसंधान, निदेशक प्रसार एवं सभी कृषि अनुसंधान केन्द्रों तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों के प्रभारियों ने भाग लिया।
प्रो0 गिल ने कहा कि किसानों को विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए मुख्य रूप से चार बातें जैसे कि – मुख्य फसलों की जगह वैकल्पिक फसलों एवं किस्मों का चयन, समय पर निराई-गु$डाई, खरपतवारों का सही समय पर नियंत्रण तथा कीटों एवं रोगों का नियंत्रण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता बताई। इस बैठक में आकस्मिक फसल प्रबन्धन कार्ययोजना बनानें पर विस्तार से चर्चा हुई तथा निम्न फसल प्रबन्धन कार्ययोजना बनाई गयी। इस योजना को वैज्ञानिक गॉंवों में जाकर बैठकें कर क्रियान्वित करने में किसानों की मदद करेंगे।
बैठक में बनाई गई कार्य योजना:
प्रो. गिल ने बताया कि 15 जुलाई के बाद मक्का, ज्वार, मूंगफली एवं सोयाबीन की बुवाई नहीं करना अधिक उपयुक्त रहेगा क्योंकि इससे फसल की प्रति हैक्टयर पैदावार बहुत कम होती है तथा लाभकारी नहीं रहती। मक्का तथा ज्वार को चारे के लिए लेना उपयुक्त रहेगा। चारे के लिए मक्का की उन्नत किस्में जैसे कि प्रताप मक्का चरी-6 तथा अफ्रीकन टाल एवं ज्वार की उन्नत किस्में जैसे प्रताप चरी-1080, एसएसजी-59-3 की बुवाई करे। यदि मक्का या ज्वार की ही बुवाई करनी हो तो इसके साथ अन्य फसलें अंतराशस्य के रूप में लेवें जैसे कि मक्का-उ$डद (2:2) या मक्का-मूंग/चंवला (1:1) या मक्का-ग्वार (2:2) या ज्वार-मूंग (2:1) तथा कम समय में पकने वाली किस्में जैसे मक्का हिम-129, प्रताप मक्का-3, प्रताप मक्का-5, माही कंचन, जी. एम 6 तथा ज्वार की सी.एस.वी. 17, प्रताप ज्वार-1430 आदि प्रयोग में लेवें।
उन्होंने बताया कि यदि कोई किसान एकल मक्का लगाना ही चाहे तो वह जल्दी पकने वाली किस्मों की वर्षा के पूर्वानुमान के अनुसार सूखी बुवाई कर सकता है, जिससे कि वर्षा के उपरान्त खेत को पुन: कृषि योग्य अवस्था में आने के लिए लगने वाले समय की बचत हो सके। यदि बुवाई वर्षा के पश्चात् करनी हो तो रोटा टिल ड्रिल से बुवाई करें, जिससे कि भूमि में वाष्पीकरण द्वारा होने वाले जल के नुकसान को कम किया जा सके। देरी से मक्का व ज्वार की बुवाई के लिए बीज दर सामान्य से 25 प्रतिशत अधिक रखनी चाहिए, जिससे उपयुक्त मात्रा में अंकुरण हो सके। मक्का के बीजों को 0.1 प्रतिशत थायोयूरिया घोल (1 ग्राम थायोयूरिया प्रति लीटर पानी) में 6 घंटे तक भिगोकर बुवाई करें। तिल, उ$डद तथा मूँग की बुवाई का सामान्य समय 15 जुलाई है। अत: मानसून की देरी को देखते हुए अन्य फसलों की अपेक्षा तिल, उ$डद तथा मूँग की फसल किसानों के लिए अधिक लाभकारी हो सकती है।
एमपीयूएटी मे नवीन पदस्थापन :
विश्वविद्यालय द्वारा जारी आदेशों के तहत मात्स्यकी महाविद्यालय मे $डॉ. ओ. पी. शर्मा तथा डेयरी एवं खाद्य विज्ञान महाविद्यालय मे अधिष्ठाता पद पर $डॉ. एल. के. मुर्डिया को पदस्थापित किया गया है। डॉ. शर्मा व $डॉ. मुर्डिया ने मंगलवार 15 जुलाई को अपना पदभार गृहण किया।
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal