मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में हुआ मुनि जिनविजय स्मृति व्याख्यान


मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में हुआ मुनि जिनविजय स्मृति व्याख्यान

"आधुनिकता यूरोपीय सभ्यता अथवा अंग्रेजों की देन नहीं है। आज हम जिनको आधुनिकता के लक्षण मानते हैं वे सदियों से भारतीय परम्परा में मौजूद है" - विख्यात कवि, आलोचक और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने ये विचार मुनि जिनविजय स्मृति व्याख्यान में व्यक्त किए। इसका आयोजन मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग और प्राकृत भारती, जयपुर ने संयुक्त रूप से किया।

 

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में हुआ मुनि जिनविजय स्मृति व्याख्यान

“आधुनिकता यूरोपीय सभ्यता अथवा अंग्रेजों की देन नहीं है। आज हम जिनको आधुनिकता के लक्षण मानते हैं वे सदियों से भारतीय परम्परा में मौजूद है” – विख्यात कवि, आलोचक और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने ये विचार मुनि जिनविजय स्मृति व्याख्यान में व्यक्त किए। इसका आयोजन मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग और प्राकृत भारती, जयपुर ने संयुक्त रूप से किया।

हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. माधव हाड़ा ने बताया कि ’’ प्राचीनता की आधुनिकता ’’ विषयक व्याख्यान में वाजपेयी ने भारतीय संस्कृति के बहुलतावादी स्वरूप को रेखांकित किया। वाजपेयी जी ने कहा कि प्रश्नाकुलता को आधुनिकता का सर्व प्रमुख लक्षण बताया जाता है जो भारतीय संस्कृति में प्रारंभ से ही व्याप्त है।

यूरोपीय आधुनिकता और सभ्यता के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उनका मध्ययुग अंधकार का युग रहा है। जबकि भारतीय सभ्यता में वह दौर ज्ञान के प्रकाश से आलोकित था। हमारा मध्य युग जगमगाता हुआ मध्ययुग रहा है। हमारे महाकाव्य मृत महाकाव्य नहीं हैं उनमें निरंतरता है। प्रतिदिन रामायण और महाभारत पर आधारित करीब 5 हजार प्रस्तुतियाँ प्रतिदिन होती हैं।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के जर्नल ’’कन्सर्न ’’ का लोकार्पण पर भी किया गया। मानविकी संकाय के अधिष्ठाता प्रो. शरद श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि यह जर्नल विश्वविद्यालय के वरिष्ठ साथियों की ज्ञान साधना का प्रतिबिम्ब है।

कार्यक्रम के अंत में विभाग के डॉ. नवीन नंदवाना ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. नीतू परिहार ने किया। व्याख्यान में नगर के गणमान्य व्यक्ति, साहित्यकार, कलाकार और विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे।

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