संगीतमयी सामयिक आराधना वन्दना का हुआ आयोजन
श्वेताम्बर वासुपुज्य जी महराज मन्दिर में विराजित साध्वी डॉ़ नीलांजनाश्री आदि ठाणा 3 की पवन निश्रा में रविवार को सामूहिक संगीतमयी सामयिक आराधना वन्दना का आयोजन किया गया। इस अनूठे धार्मिक आयोजन में शहर समाज के कई महिला- पुरूष श्रावक- श्राविकाएं उपस्थित हुए।
श्वेताम्बर वासुपुज्य जी महराज मन्दिर में विराजित साध्वी डॉ़ नीलांजनाश्री आदि ठाणा 3 की पवन निश्रा में रविवार को सामूहिक संगीतमयी सामयिक आराधना वन्दना का आयोजन किया गया। इस अनूठे धार्मिक आयोजन में शहर समाज के कई महिला- पुरूष श्रावक- श्राविकाएं उपस्थित हुए।
मन्दिर ट्रस्ट के सदस्य दलपत दोशी ने बताया कि इस पुनीत अवसर पर उपस्थित सभी श्रावकों से साध्वीश्री ने सामयिक की संगीतमयी आराधना- वन्दना करवाई। आयोजन में संयम-सामयिकी की बोलियां भी लगाई गई। इसके बाद साध्वीश्री ने अपने मंगल हाथों से श्रावक-श्राविकाओं को सामयिक उपकरण प्रदान किये।
इस अवसर पर साध्वीश्री नीलांजनाश्री ने उपस्थित श्रावकों से कहा कि जीवन में सामयिक वन्दना का बड़ा महत्व है, यदि सामयिकी है तो आप में स्वयं में परमात्मा है। इससे आत्मा के साथ ही शरीर को भी शांति प्राप्त हो जाती है। वास्तव में अगर कोई मोक्ष का मार्ग है तो वह है सामयिकी। इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है।
साध्वीश्री ने कहा कि साधु हमेशा पट पर विराजते हैं और जब उनका शरीर मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसे देवलोकगमन कहते हैं। इसीलिए साधु पालकी में ही बैठकर देवलोक गमन करते हैं। साधु संयम का प्रतीक होता है। इसके विपरीत जब एक सांसारिक गृहस्थ जो संसार में पड़ा रहता है मृत्यु को प्राप्त होता है तब लोग कहते हैं इसकी मौत हो गई है। जब उसकी अन्तिम यात्रा निकलती है तो लोग उसे अर्थी पर लिटाकर और बांध कर ले जाते हैं। वह मरने के बाद भी पड़ा-पड़ा ही श्मशान जाता है। इसलिए संयम और सामयिकी की साधना करोगे तो आप मृत्यु नहीं देवलोक गमन करोगे और श्मशान में पड़े-पड़े नहीं पालकी में बैठे-बैठे जाओगे। इसलिए संयम पूजो, संयम वन्दों क्योंकि संयम ही जीवन का तारण हार होता है।
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