दिवेर विजय अभियान पर मोती मगरी में राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
यहां फतहसागर स्थित महाराणा प्रताप स्मारक समिति में रविवार को दिवेर विजय अभियान के उपलक्ष में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में इतिहासविदों ने मेवाड़ के गौरवमयी इतिहास पर अपने विचार व्यक्त किए। सभी का मत था कि मेवाड़ ने हर चुनौतियां का डटकर सामना किया।
यहां फतहसागर स्थित महाराणा प्रताप स्मारक समिति में रविवार को दिवेर विजय अभियान के उपलक्ष में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में इतिहासविदों ने मेवाड़ के गौरवमयी इतिहास पर अपने विचार व्यक्त किए। सभी का मत था कि मेवाड़ ने हर चुनौतियां का डटकर सामना किया।
महाराणा प्रताप स्मारक समिति, मोतीमगरी, उदयपुर के सचिव युद्धवीर सिंह शक्तावत ने बताया की समिति के अध्यक्ष लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के मार्गनिर्देशन में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी महाराणा प्रताप के ‘दिवेर विजय अभियान’ की स्मृति में ‘16वीं शताब्दी में मेवाड़ के समक्ष चुनौतियां और प्रतिकार’ विषय पर आयोजित की गई।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. शिवकुमार भनोत, पूर्व विभागाध्यक्ष-इतिहास विभाग एवं डीन, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर ने कहा कि 16वीं शताब्दी का अध्ययन स्थानीय एवं फारसी स्त्रोतों के आधार पर किया जाना चाहिये तभी उन चुनौतियों को समझा जा सकेगा जो मुगल साम्राज्य की भारत में स्थापना के बाद 16 वीं शताब्दी मेें सम्पन्न हुई थी।
मुख्य अतिथि प्रो. परमेन्द्र दशोरा, कुलपति-कोटा विश्वविद्यालय, कोटा एवं महाराणा प्रताप प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने वर्तमान चुनौतियों को 16वीं शताब्दी के इतिहास के सर्न्दभ में समझने की बात कही। असहिष्ण्ुाता पर विचार व्यक्त करते हुये उन्होने कहा कि इतिहास में देखा जाता है कि मेवाड़ हर क्षेत्र में सहिष्णुता का पर्याय रहा हैं। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए समिति के उपाध्यक्ष सज्जन सिंह राणावत ने अकबर के चित्तौड़ आक्रमण के समय तोपों के उपयोग, तोपांे के निर्माण एवं बारूद की जानकारी को साझा किया।
द्वितीय सत्र में लगभग 12 शोध पत्रों का वाचन हुआ, प्रारम्भ में समिति के सदस्य डॉ. इकबाल सागर एवं समिति के कोषाध्यक्ष शिव प्रसाद राठौड़ ने अतिथियों का माल्यार्पण, उपर्णा एवं स्मृति चिन्ह से स्वागत किया।
कार्यक्रम का संयोजन करते हुए डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा ने कहा कि मोतीमगरी के ऐतिहासिक प्रागंण में महाराणा प्रताप स्मारक समिति, द्वारा 1998 से लगातार इस प्रकार की राष्ट्रीय संगोष्ठीयां की जा रही हैं। ताकि मेवाड़ के प्रति शोधार्थियों का ध्यानाकर्षण हो। 16वीं शताब्दी विश्व स्तर पर पुनर्जागरण को लेकर युरोपियन देशों में रंेनेशा राष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल और मेवाड़ स्तर पर देश की राष्ट्रीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक दशा का सामना करने वाली के रूप में विख्यात रहा हैं, मेवाड़ इसका आधारभूत अधिष्ठान रहा है। प्रो. के.एस. गुप्ता ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन दिया। डॉ. श्रीकृष्ण जूगनु, डॉ. बृजमोहन जावलिया, डॉ. देवकोठारी, प्रो. गिरिशनाथ माथुर, प्रो. पी.के. चुण्डावत, डॉ. राजेन्द्र पुरोहित आदि ने पत्र वाचन किया।
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